Book Title: Buddh Vachan
Author(s): Mahasthavir Janatilok
Publisher: Devpriya V A

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Page 41
________________ - २० - ध. १६ अपने दीपक वनो, अपनी ही गरण जाओ, किसी दूसरे की शरण नही। काम तो तुम्हे ही सिरे चढाना है, तथागत तो केवल मार्ग वतला देने वाले है। म. २६ भिक्षुओ, ध्यान दो, अमृत मिला है। मैं तुम्हे सिखाता हूँ। मैं तुम्हे धर्मोपदेश देता हूँ। जैसे मै बताता हूँ, उसके अनुकूल आचरण करके जिस उद्देग की पूर्ति के लिए कुल-पुत्र घर से वेघर हो प्रवजित होते है, उस अनुत्तर ब्रह्मचर्य को गीघ्र ही इसी जन्म मे जान कर, साक्षात कर, प्राप्त कर, विचरो।

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