Book Title: Buddh Vachan
Author(s): Mahasthavir Janatilok
Publisher: Devpriya V A

View full book text
Previous | Next

Page 48
________________ - २७ - भिक्षुओ, यदि कोई ऐसा कहे कि वेदना मेरा आत्मा है, तो उमे यूं कहना दी. १५ चाहिये कि आयुष्मान् वेदना तीन तरह की होती है (१) मुख-वेदना, (२) दुख-वेदना, (३) असुख-अदुख वेदना। इन तीन तरह की वेदनाओ में से किस तरह की वेदना को आप 'आत्मा' समझते है? क्योकि भिक्षुओ, जिस समय कोई सुख-वेदना की अनुभूति करता है, उस समय उसे न तो दुख-वेदना की अनुभूति होती है, न असुख-अदुख वेदना की, उस समय उसे केवल सुख-वेदना की ही अनुभूति होती है। निस समय कोई दुख-वेदना की अनुभूति करता है, उस समय उसे न तो सुख-वेदना की अनुभूति है, न असुख-अदु ख वेदना की, उस समय उसे केवल दुख-वेदना की ही अनुभूति होती है । जिस समय कोई अमुख-अदुख वेदना की अनुभूति करता है, उस समय न उसे सुख-वेदना की अनुभूति होती है, न दुख वेदना की, उस समय उसे केवल असुख-अदुख वेदना की अनुभूति होती है। भिक्षुओ, यह तीनो वेदनाये अनित्य है, सस्कृत है, प्रत्यय से उत्पन्न है, क्षय होने वाली है, व्यय होने वाली है, विराग को प्राप्त होने वाली है, निरोध को प्राप्त होने वाली है। इन तीनो वेदनाओ मे से किसी एक की भी अनुभूति करते समय यदि किसी को ऐसा होता है कि "यह आत्मा है" तो फिर उस वेदना का निरोध होते समय उसको ऐसा होगा कि "मेरा आत्मा विखर रहा है"। इस प्रकार वह अपने सामने ही अनित्य, सुस-दुख मय, उत्पन्न तया विनाग होने वाले "आत्मा" को देखता है। भिक्षुओ यदि कोई कहे "मेरी वेदना आत्मा नही, आत्मा की अनुभूति नहीं होती", तो उससे यह पूछना चाहिये कि आयुष्मान्, जहाँ किसी की अनुभूति ही नहीं, उसके बारे मे क्या यह हो सकता है कि मैं यह (आत्मा) हूँ ?" __ लेकिन भिक्षुओ, यदि कोई ऐसा कहे कि "न तो मेरी वेदना आत्मा है, और न ही मेरे आत्मा की अननुभूति होती है, किन्तु मेरा आत्मा

Loading...

Page Navigation
1 ... 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93