Book Title: Buddh Vachan
Author(s): Mahasthavir Janatilok
Publisher: Devpriya V A

View full book text
Previous | Next

Page 54
________________ - ३३ - इस प्रकार न वह अपने लिये न किमी दूसरे के लिये, न किसी लौकिक पदार्थ के ही लिये जान बूझ कर झूठ बोलता है। __ वह चुगली करना छोड, चुगली करने से दूर रह, यहाँ की वात सुनकर वहाँ नही कहता कि यहाँ के लोगो मे झगडा हो जाये, वहाँ की बात सुन कर यहाँ नही कहता कि वहाँ के लोगो मे झगडा हो जाए। वह एक दूसरे से पृथग् पृथग् होने वालो को मिलाता है, मिले हुओ को पृथग नहीं होने देता। वह ऐसी वाणी बोलता है जिस से लोग इकट्ठे रहे, मिल जुल कर रहे। . वह कठोर वाणी छोड, कठोर गब्दो से दूर रह ऐसी वाणी बोलता है जो कानो को सुख देने वाली, प्रेम भरी, हृदय मे पैठ जाने वाली, सभ्य, बहुत जनो को प्रिय लगने वाली हो। वह जानता है (१) जो लोग यह सोचते रहते है कि 'इसने मुझे गाली दी, इसने मुझे ध. १ मारा, इसने मेरा मजाक उडाया', उनका वैर कभी शान्त नहीं होता। (२) वर वैर से कभी शान्त नहीं होता। अवैर से ही होता हैयही सनातन वात है। फजूल बोलना छोडकर, फजूल वोलने से दूर रह कर वह ऐमी वाणी म.१ वोलता है जो समयानुकूल हो, यथार्थ हो, वेमतलव न हो, धर्मानुकूल हो नियमानुक्ल हो । भिक्षुओ, आपस मे इकट्ठे होने पर दो वातो मे से एक वात होनी म. २६ चाहिये या तो धार्मिक वात-चीत या फिर आर्य-मौन । भिक्षुओ, इसे सम्यक् वाणी कहते है। ३

Loading...

Page Navigation
1 ... 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93