Book Title: Buddh Vachan
Author(s): Mahasthavir Janatilok
Publisher: Devpriya V A

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Page 46
________________ - २५ - कान्तार, मतो का दिखावा, मतो का फन्दा, तथा मतो का बन्धन। इन मतो के बन्धन मे बँधा हुआ आदमी, जिसने (सद्धर्म को) नही सुना वह जन्म, वुढापे, तथा मृत्यु से मुक्त नहीं होता और मुक्त नही होता, शोक मे, रोनेपीटने से, पीडित होने से, चिन्तित होने से, परेशान होने से। मैं कहता हूँ कि वह दुख से मुक्त नहीं होता। भिक्षुओ, जिस पडित आदमी ने आर्यों की सगति की है, आर्य-धर्म का म, २ ज्ञान प्राप्त किया है, आर्य-धर्म का अच्छी तरह अभ्यास किया है, सत्पुरुपो की सगति की है, सद्धर्म का ज्ञान प्राप्त किया है, सद्धर्म का अभ्यास किया हैवह यह जानता है कि उसे किन बातो को मन मे स्थान देना चाहिये , और किन वातो को मन मे स्थान नहीं देना चाहिये। यह जानते हुए वह जिन वातो को मन में स्थान नहीं देना चाहिये, उन्हे मन में स्थान नहीं देता है, जिन्हे मन में स्थान देना चाहिये, उन्हे मन मे स्थान देता है। वह "यह दुख है" इसे भली प्रकार हृदयङ्गम करता है, “यह दुख का भमुदय है" इमे भली प्रकार हृदयङ्गम करता है, "यह दुख का निगेव है," इने भली प्रकार हृदयङ्गम करता है, और "यह दुस के निरीव की ओर ले जाने वाला मार्ग है"-इसे भली प्रकार हृदयङ्गम करता है। इन्हे इस तरह हृदयङ्गम करने वाले के तीनो वन्यन कट जाते है- म. २२ (१) सत्काय-दृष्टि, (२) विचिकित्मा, (३) शील-व्रत परामर्ग। जिनके भिक्षुओ, यह तीनो बन्धन कट गये है, वे सभी बोनापन्न है, उनका पतन असम्भव है, उनकी मम्बोधि-प्राप्ति निश्चित है। पृथ्वी के एक छत्र राज्य में, स्वर्ग-लोक को जाने , नमन विन्च के ध. १०८ आधिपत्य में भी बढकर है धानापति-फल। मिओ, यदि पर्छ कि भगवान गौतम किस दृष्टि के है तो उसे म ७२ भिक्षुओ, स्या उत्तर दग? मिनी 'नयागत घिमी दृष्टि में है' मी गत नहीं रही है। निओनयागाने यह सब देंग दिया है कि यह म्प है, यह स्प का नमुद्रय है, हा अन्न हाना है, यह बेटना है, यह बेदना का

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