Book Title: Buddh Vachan
Author(s): Mahasthavir Janatilok
Publisher: Devpriya V A

View full book text
Previous | Next

Page 49
________________ - २८ - अनुभव करता है, मेरे आत्मा का स्वभाव-गुण हे वेदना।" तो उससे पूछना चाहिये, कि "आयुप्मान्, यदि सभी वेदनाओ का सम्पूर्ण निरोः हो जाए, कोई एक भी वेदना न रहे, तो क्या किसी एक भी वेदना के : होने पर ऐसा होगा कि यह (आत्मा) मै हूँ" ? म १४८ और भिक्षुओ, यदि कोई कहे कि "मन आत्मा है" तो यह भी ठीक नही है । क्योकि मन की उत्पत्ति और निरोध, दोनो दिखाई देते है जिस की उत्पत्ति और निरोव दोनो दिखाई देते है, उसे आत्म मान लेने पर यह मान लेना होता है कि "मेरा आत्मा उत्पन्न होता है और मरता है,।" इस लिए "मन आत्मा है"--यह ठीक नहीं है। मन अनात्म है। ___ ओर भिक्षुओ, यदि कोई कहे कि धर्म (=मन के विपय) आत्मा है, तो यह भी ठीक नही है। क्योकि धर्म की उत्पत्ति और निरोध दोन दिखाई देते है। जिस की उत्पत्ति और निरोप दोनो दिखाई देते है, उसे 'आत्मा' मान लेने पर यह मान लेना होता है कि "मेरा आत्मा उत्पन्न होता है ओर मरता है" इस लिए "धर्म आत्मा है"--यह ठीक नही है । धर्म अनात्म है। __ और भिक्षुओ, यदि कोई कहे कि 'मनोविज्ञान आत्मा है' तो यह भी ठीक नहीं है। क्योकि मनोविज्ञान की उत्पत्ति और निरोव, दोनो दिखाई देते है । जिसकी उत्पत्ति और निरोव दोनो दिखाई देते है, उसे 'आत्मा' मान लेने पर यह मान लेना होता है कि 'मेरा आत्मा उत्पन्न होता तया मरता है।' इस लिए "मनो-विज्ञान आत्मा है”—यह ठीक नही है । मनो-विज्ञान अनात्म है । स २१७ भिक्षुओ, यह कही अच्छा है कि वह आदमी जिसने सद्धर्म को नही सुना, चार महाभूतो से बने शरीर को आत्मा समझ ले, लेकिन चित्त को नही । वह क्यो? यह जो चार महाभूतो से बना हुआ शरीर है यह एक साल-दो साल-तीन साल-चार साल-पॉच साल छ साल

Loading...

Page Navigation
1 ... 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93