Book Title: Buddh Vachan
Author(s): Mahasthavir Janatilok
Publisher: Devpriya V A

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Page 39
________________ - १८ - वे स्थित-प्रज्ञ भिक्षु को तनिक नही हिला पाते। उसका चित्त स्थिर होता है, मुक्त होता है, उसके वश मे होता है। भिक्षुओ, ऐसा आयतन है, जहाँ न पृथ्वी है, न जल है, न अग्नि है, न वाय है, न आकाश-आयतन है, न विज्ञान-आयतन है, न अकिञ्चन-आयतन है, न नेक्सञ्जानासना -आयतन है, न यह लोक है, न परलोक है, न चाँद है, न सूर्य है, वहाँ भिक्षुओ न जाना होता है, न आना होता है, न ठहरनार होता है, न च्युत होना होता है, न उत्पन्न होना होता है, वह आधार-रहित है, ससरण-रहित है, आलम्बन-रहित है। यही दुख का अन्त है। उ.८ भिक्षुओ। जात (=उत्पन्न) का अभाव है, भूत का अभाव है, कृत' का अभाव है, सस्कृत का अभाव है। यदि भिक्षुओ, जात का अभाव न होता, भूत का अभाव न होता, कृत का अभाव न होता, सस्कृत का अभाव न होता, तो भिक्षुओ, जात से, भूत से, कृत से, सस्कृत से, मुक्ति न दिखाई देती। लेकिन क्योकि भिक्षुओ, जात का अभाव है, भूत का अभाव है, कृत का अभाव है, सस्कृत का अभाव है, इसी लिए जात से, भत से, कृत से, सस्कृत मे मुक्ति दिखाई देती है।

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