Book Title: Buddh Vachan
Author(s): Mahasthavir Janatilok
Publisher: Devpriya V A

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Page 34
________________ - १३ - रूप-सजा, (=सना) गब्द-सञ्जा, गन्ध-सज्ञा, रस-मना, स्पर्श-सना तथा धर्म (=मन के विपय)-सञ्जा-यह सव प्रिय-कर है, इन सव में मजा है, इन्ही मे यह तृप्णा पैदा होती है, और इन्ही में यह अपना घर वनाती है। स्प-सचेतना, शब्द-सचेतना, गन्व-सचेतना, रम-सचेतना, स्पर्शसचेतना तथा धर्म (=मन के विषय)-सचेतना-यह सव प्रिय-कर है, इन सव में मजा है, इन्ही मे यह तृप्णा पैदा होती है, और इन्ही मे यह अपना घर वनाती है। ___ रूप-वितर्क, शब्द-वितर्क, गन्ध-वितर्क, रस-वितर्क, स्पर्श-वितर्क तया धर्म (=मन के विषय)-वितर्क यह सव प्रिय-कर है, इन सव मे मजा है, इन्ही मे यह तृष्णा पैदा होती है, और इन्ही मे यह अपना घर वनाती है। स्प-विचार, गब्द-विचार, गन्ध-विचार, रस-विचार, स्पर्श-विचार, तथा धर्म (=मन के विषय)-विचार-यह सव प्रिय-कर है, इन सब मे मजा है, इन्ही मे यह तप्णा पैदा होती है, और इन्ही मे यह अपना घर बनाती है। मनुष्य अपनी आँख से रूप देखता है। प्रिय-कर लगे तो उसमे आसक्त म ३८ हो जाता है, अप्रिय-कर हो, तो उससे दूर भागता है। कान से शब्द सुनता है, प्रिय-कर लगे तो उसमे आसक्त हो जाता है, अप्रिय-कर लगे तो उससे दूर भागता है। ब्राण से गन्ध सूंघता है, प्रियकर लगे तो उसमे आसक्त हो जाता है, अप्रिय-कर लगे तो उससे दूर भागता है। जिह्वा से रस चखता है, प्रिय-कर लगे तो उसमे आसक्त हो जाता है, अप्रिय-कर लगे तो उसमे दूर भागता है। काय-से स्पर्श करता है, प्रिय-कर लगे तो उसमे आसक्त हो जाता है, अप्रिय-कर लगे तो उससे दूर भागता है। मन से मन के विषय (धर्म) का चिन्तन करता है, प्रिय-कर लगे तो उसमे आसक्त हो जाता है, अप्रिय-कर लगे तो उससे दूर भागता है। इस प्रकार आसक्त होने वाला तया दूर भागने वाला, जिस दुख, मुख वा अदु ख असुख, किसी भी प्रकार की वेदना अनुभूति का अनुभव करता

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