Book Title: Buddh Vachan
Author(s): Mahasthavir Janatilok
Publisher: Devpriya V A

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Page 32
________________ दुःख समुदय आर्य-सत्य भिक्षुओ, दुख के समुदय के बारे मे आर्य-सत्य क्या है ? भिक्षुओ, यह जो फिर फिर जन्म का कारण है, यह जो लोभ तथा राग से युक्त ह, यह जो जही कही मजा लेती है, यह जो तृप्णा है, जैसे काम-तृष्णा, भव-तृष्णा तथा विभव-तृष्णा—यह तृष्णा ही दुख के समुदय के बारे मे आर्य-सत्य है। ___ तो भिक्षुओ, यह तृप्णा कैसे पैदा होती हुई पैदा होती है और कैमे अपना दी २२ घर वनाती हुई घर वनाती है ? ससार मे जो प्रिय-कर है, ससार मे जिसमे मजा है, वही यह तृष्णा पैदा होती है, और वही यह अपना घर वनाती है। सतार मे प्रिय-कर क्या है, ससार में मजा किस म है ? ससार मे चक्षु प्रिय-कर है, ससार मे चक्षु मे मजा है। ससार में स्प प्रिय-कर है, मसार मे स्प मे मजा है। ससार मे श्रोत्र प्रिय-कर है, समार मे श्रोत्र मे मजा है। सतार मे शब्द प्रिय-फर है, ससार मे शब्द मे मजा है। ससार मे घ्राण प्रिय-कर है, ससार मे घ्राण मे मजा है । ससार मे गध प्रिय-कर है, मसार मे गन्ध मे मजा है। संसार मे जिह्वा प्रिय-कर है, ससार मे जिह्वा मे मजा है। ससार मे रस प्रिय-कर है, ससार मे रस में मजा है। ससार मे काय प्रिय-कर है ससार मे काय मे मजा है। ससार मे स्पर्श प्रिय-कर है, ससार मे स्पर्श मे मजा है। ससार मे मन प्रिय-कर है, ससार मे मन में मजा है। ससार मे मन के विषय =धर्म) प्रिय-कर है, ससार मे मन के विषयो मे मजा है-इन्ही में यह तृष्णा पैदा होती है और इन्ही में अपना घर वनाती है।

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