Book Title: Buddh Vachan
Author(s): Mahasthavir Janatilok
Publisher: Devpriya V A

View full book text
Previous | Next

Page 31
________________ स १४-२ सहने वालो ने, सम्पत्ति के विनाश का दुख सहने वालो ने, रोगी होने का दुख सहने वालो ने ससार मे बार बार जन्म लेकर प्रिय के वियोग और अप्रिय के सयोग के कारण जो रो-पीटकर आँसू बहाए है, वे ही अधिक है, इन चारो महासमुद्रो का जल नही । तो भिक्षुओ, क्या समझते हो, यह जो चारो महासमुद्रो मे पानी है, यह अधिक है अथवा यह जो ससार मे बार वार जन्म लेकर सीस कटाने पर रक्त वहा है ? भिक्षुओ 1 'ग्राम घातक चोर है' करके सिर काटने पर, 'डाका डालने 'वाले चोर है' करके सिर काटने पर, 'पराई स्त्री के पास जाने वाले चोर है' करके सिर काटने पर चिर काल तक जो रक्त वहा है, वही अधिक है, इन चारो महासमुद्रो का जल नही । यह किस लिए? भिक्षुओ, ससार अनादि है । अविद्या और तृष्णा से सचालित, भटकते फिरते आदमियो के आरम्भ (पूर्वं कोटि) का पता नही चलता । इस प्रकार भिक्षुओ, दीर्घ काल तक दुख का अनुभव किया है, तीव्र दुख का अनुभव किया है, बडी बडी हानियाँ सही है, श्मशान भूमि को पाट दिया है । अव तो भिक्षुओ, सभी सस्कारो से निर्वेद प्राप्त करो, वैराग्य प्राप्त करो, मुक्ती प्राप्त करो ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93