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न आकाश मे, न समुद्र की सतह मे, न पर्वतो के विवर मेससार मे ध. १ कही भी कोई ऐसी जगह नहीं है, जहाँ भाग कर मनुष्य पाप से बच सके।
भिक्षुओ, ऐसा समय आता है जब यह महासमुद्र सूख जाता है, नही स २१-१० रहता है, लेकिन अविद्या और तृष्णा से सचालित, भटकते फिरते प्राणियो के दुख का अन्त नहीं होता।
भिक्षुओ, ऐसा समय आता है, जब यह महापृथ्वी जल जाती है, विनाश को प्राप्त होती है, नही रहती है, लेकिन अविद्या और तृष्णा से सचालित, भटकते फिरते प्राणियो के दुख का अन्त नही।