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- १२ - नहीं करता, उसी प्रकार मनुष्य निर्वृत होता है, निर्वाण को प्राप्त नहीं करता। ___और यह निर्वाण, भिक्षु ही प्राप्त कर सके-ऐसा नियम नही है। कोई भी हो स्त्री हो या पुरुप, गृहस्थ हो या प्रवजित-जिसका राग शान्त हो गया हो, जिसका दोप शान्त हो गया हो है, जिसका मोह शान्त हो गया है -वह निर्वाण-प्राप्त है।
दुख और दु ख का एकान्तिक-निरोध-यही है सभी बुद्धो की शिक्षा का सार।
यह 'बुद्ध-वचन' नाम से त्रिपिटक मे से जो छोटा सा सकलन किया गया है, इस सकलन का श्रेय है हमारे वयोवृद्ध, ज्ञानवृद्ध, पूज्य महास्थविर जानतिलोक को। आप जर्मन-देशीय है और लगभग पिछले ४० वर्ष से सिहल (लका) मे है। आजकल आप वहाँ एक द्वीप-आश्रम ( Island Hermitage ) मे, सिहल के दक्षिणी हिस्से मे रहते है। एक दो वर्ष आप जापान मे प्रोफेसर रहे और लडाई के दिनो मे काफी दिन अग्रेजी सरकार के जेल-खाने मे। जहाँ कही पालि के पाण्डित्य की चर्चा होती है, आपका नाम अति श्रद्धा से लिया जाता है।
कुछ वर्ष हुए आपने पालि त्रिपिटक के उद्धरणो का यह सकलन, जो कि वाद मे जर्मन और अग्रेजी मे अनूदित होकर छपा, किया था। मुझे यह सकलन बहुत ऊँचा, क्योकि यह बौद्धधर्म के परिचितो और अपरिचितो दोनो के लिए समान रूप से काम की चीज है। इसमे त्रिपिटक के उद्धरणो को इस तरतीब से सजाया गया है कि कोई एक बात दो बार नही आती और सब मिलकर एक क्रम-बद्ध गास्त्र का रूप धारण कर लेता है।
मेरी अपनी राय है कि बुद्ध-धर्म की सारी रूप-रेखा का समावेश इस छोटे से सकलन मे हो जाता है।
कई वर्प हुए, मैने इस सकलन के अग्रेजी रूपान्तर को पढा। तभी मेरी इच्छा हुई, इसे हिन्दी मे छपा देखने की। 'किसी न किसी को इसे