Book Title: Buddh Vachan
Author(s): Mahasthavir Janatilok
Publisher: Devpriya V A

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Page 22
________________ उन भगवान् अर्हत् सम्यक् सम्वुद्ध का नमस्कार हैं। बुद्ध-वचन भिक्षुओ। तथागत अर्हत् सम्यक् सम्बुद्व ने वाराणसी म (बनारस) के ऋपिपतन मृगदाव मे अनुत्तर धर्मचक्र चलाया है। इस से पहले ऐसा धर्मचक्र लोक मे न किसी श्रमण ने, न किसी ब्राह्मण ने, न किसी देवता ने, न किसी मार ने और न किसी ब्रह्मा ही ने चलाया। कौनसा धर्मचक्र ? यह जो चार आर्य-सत्यो का कहना है, यह जो चार आर्य-सत्यो का उपदेश करना है, यह जो चार आर्य-सत्यो का प्रकागित करना है, 'यह जो चार आर्य-सत्यो का स्थापित करना है, यह जो चार आर्य-सत्यो का विस्तार करना है, यह जो चार आर्य-सत्यो का विभाजन करना है, और यह जो चार आर्य-सत्यो को उघाड कर दिखा देना है। कोन से चार आर्य-सत्यो को ? (१) दुख आर्य-सत्य को, (२) दुख समुदय आर्य-सत्य को, (३) दुख निरोव आर्य-सत्य को (४) दुख निरोव की ओर ले जाने वाले मार्ग आर्य-सत्य को। भिक्षुओ। जव तक मुझे इन चार आर्य-सत्यो का यूं तेहरा करके बारह प्रकार से ययार्थ ज्ञान-दर्शन स्पष्ट नही हो गया, तब तक मैने यह दावा नही किया कि मैने देव और मार-सहित लोक मे, तथा श्रमण-ब्राह्मण और देव-मनुष्यो से युक्त प्रजा मे सव से बढ कर सम्यक् जान को पा लिया, लेकिन जब मुझे इन चार आर्य-सत्यो का यू तेहरा करके वारह प्रकार से यथार्थ ज्ञान-दर्शन स्पष्ट हो गया, तो मैने दावा किया कि मैने देव और मार सहित लोक मे, तया श्रमण-ब्राह्मण और देव-मनुष्यो से युक्त प्रजा मे सव से वढ कर सम्यक ज्ञान को पा लिया।

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