Book Title: Buddh Vachan
Author(s): Mahasthavir Janatilok
Publisher: Devpriya V A

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Page 15
________________ १० हरण मे यह नही पूछते कि जो रोगनी थी वह क्या हुई, क्योकि हम जानते है कि रोशनी की उत्पत्ति का कारण तो बिजली की धारा थी, वह वन्द हो गई तो अव और रोशनी कैसे उत्पन्न हो, उसी प्रकार जब अविद्या - तृष्णा की धारा बन्द हो गई, तो फिर अव जन्म-मरण का दीपक कहाँ से जले ? उसका तो निर्वाण अवश्यम्भावी है । तो वौद्ध पुनर्जन्म को मानते है ? हाँ, व्यवहार -दृष्टि से अवश्य मानते है । “भिक्षुओ जैसे गो से दूध, दूध से दही, दही से मक्खन, मक्खन से घी, घी से घी-मण्ड होता है । जिस समय मे दूध होता है, उस समय न उसे दही कहते है, न मक्खन, न घी, न घी का माडा । इसी प्रकार भिक्षुओ, जिस समय मेरा भूतकाल का जन्म था, उस समय मेरा भूतलाल का जन्म ही सत्य था, यह वर्तमान और भविष्यत का जन्म असत्य था । जब मेरा भविष्यतकाल का जन्म होगा, उस समय मेरा भविष्यतकाल का जन्म ही सत्य होगा, यह वर्तमान और भूत काल का जन्म असत्य होगा । यह जो अव मेरा वर्तमान मे जन्म है, सो इस समय मेरा यही जन्म सत्य है, भूतकाल का और भविष्यतकाल का जन्म असत्य है | "भिक्षुओ, यह लौकिक सज्ञा है । लौकिक निरुक्तियाँ है, लौकिक व्यवहार है, लौकिक प्रज्ञप्तियाँ है - इनका तथागत व्यवहार करते हैं, लेकिन इनमे फँसते नही ।" " जव आत्मा ही नही, तव पुनर्जन्म किसका ?" यह एक प्रश्न है जो प्राय सभी पूछते है । इसका आशिक उत्तर ऊपर दिया जा चुका है । अधिक स्पष्टता और सरलता से कहने के लिए यह कहा जा सकता है कि जो कार्य्यं अवौद्ध दर्शन आत्मा से लेते हैं, वह सारा कार्य्यं वौद्ध दर्शन मे मन-चित्त-- विज्ञान से ही ले लिया जाता है। आत्मा को जब शाश्वत, ध्रुव, अविपरिणामी मान लिया तो फिर उसके सस्कारो का वाहक होने की संगति ठीक नही बैठती, लेकिन मन - चित्त - विज्ञान तो परिवर्तन

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