Book Title: Buddh Vachan
Author(s): Mahasthavir Janatilok
Publisher: Devpriya V A

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Page 16
________________ ११ गील है, वह अच्छे कर्मों से अच्छा और बुरे कर्मों से बुरा हो सकता है । उसके सस्कारो का वाहक होने में कोई आपत्ति नही । धम्मपद की पहली गाथा है मनो पुव्वङ्गमा धम्मा मनो सेय्ठा मनोमया मनसा चे पटुटठेन भासति वा करोति वा ततोन दुखमन्वेति चक्क व वहतो पद । सभी अवस्थाओ का पूर्व - गामी मन है, उनमे मन ही श्रेष्ठ है, वे मनोमय है । जव आदमी प्रदुष्ट मन से वोलता है वा कार्य्यं करता है, तव दुख उसके पीछे पीछे ऐसे हो लेता है जैसे ( गाडी के) पहिये (वैल के) पैरो के पीछे पीछे । तो भगवान् बुद्ध की शिक्षा के अनुसार इस प्रतिक्षण अनुभव होने वाले दुख का अन्त किस प्रकार किया जा सकता है ? यही विचारवान वनकर, सदाचारी वनकर, चित्त की एकाग्रता का सपादन करके । धम्मपद की प्रसिद्ध गाथा है सव्व पापस्स अकरण । कुसलस्स उपसम्पदा ॥ सचित्त परियोदपन | एत बुद्धानसासन || अशुभ कर्मो का न करना, शुभ कर्मों का करना और चित्त को काबू मे रखना -- यही वुद्धो की शिक्षा है । भिक्षु जिस समय दीक्षा ग्रहण करता है अपने आचार्य से कहता है कि सब दुखो का जो एकान्तिक-निरोध अथवा निर्वाण है, उसकी प्राप्ति के लिए यह कापाय वस्त्र देकर मुझे प्रव्रजित कर दे । निर्वाण या मोक्ष मनुष्य के बाहर की कोई ऐसी चीज नही है जिसके पीछे भाग कर यह उसे प्राप्त करता हो । मनुष्य जिस प्रकार स्वय स्वस्थ होता है, स्वास्थ्य को प्राप्त

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