Book Title: Buddh Vachan
Author(s): Mahasthavir Janatilok
Publisher: Devpriya V A

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Page 12
________________ त्रिपिटक मे यह जो बुद्ध ने वार वार कहा है कि "भिक्षुओ, दुख आर्यसत्य क्या है ? पैदा होना दुख है, बूढा होना दुःख है, मरना दुख है, गोक करना दुःख है, रोना पीटना दुःख है, पीडित होना दुख है, परेशान होना दुख है, थोडे मे कहना हो तो पॉच उपादान स्कन्ध ही दुख है," सो अर्हत् की ही दृष्टि से कहा है। तव तो बुद्ध धर्म विल्कुल निरागावाद ही निराशावाद है? नही। निराशावाद कहता है दुख है, और दुख से छुटकारा नहीं, लेकिन वुद्धधर्म एक योग्य चिकित्सक की भॉति कहता है "दुख है और दुख से छुटकारा है।" जो धर्म बिना किसी परमात्मा मे विश्वास के, विना किसी परमात्मा के अवतार पुत्र या पैगम्बर पर निर्भर्ता के, विना किसी 'ईश्वरीय ग्रन्थ' को मानने की मजबूरी के, विना किसी पुरोहित आदि की आवश्यकता के सभी दुखो का अत कर देने का रास्ता बताता है, उससे वढ कर आशावादी धर्म कौन सा होगा? हॉ तो इस दुख-ससार का कारण क्या है ? ईश्वर? बुद्ध कहते है "वह ईश्वर भी वडा खराव होगा जिसने (कुछ लोगो के मत मे) ऐसा दुखमय ससार बनाया।" बुद्ध के मत मे दुख का कारण हम स्वय है, हमारी अपनी अविद्या है, हमारी अपनी तृष्णा है। "भिक्षुओ, यह जो फिर फिर जन्म का कारण है, यह जो लोभ तथा राग से युक्त है, यह जो जही कही मजा लेती है, यह जो तृष्णा है, जैसे काम-तृष्णा, भव-तृष्णा, विभव-तृष्णा-यह तृप्णा ही दुख के समुदय के बारे मे आर्य-सत्य है (पृ० ११) ऊपर कह आये है कि वुद्ध का जो विशेप उपदेश है, वह केवल 'दुख और दुख से मुक्ति' का उपदेश है। "दो ही चीजे भिक्षुओ, मै सिखाता हूँ-दुख और दुःख से मुक्ति"। (संयुत्त नि०) । प्रश्न होता है यह दुखी होने वाला कौन है ? यह दुख से मुक्त होने वाला कौन है ? आत्म-वादी दर्शनो से यदि यह प्रश्न पूछा जाए तो उनका तो सीधा उत्तर है 'जीव-आत्मा'।

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