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भूमिका
छेदसूत्रों और उनके निर्युक्ति, भाष्य आदि व्याख्या ग्रंथों में जैन मुनियों के आचार का विस्तृत विवेचन है। भगवान महावीर के बाद दस-पन्द्रह शताब्दियों के अंतराल में होने वाली परिस्थितियों, विधि-निषेधों, उत्सर्ग और अपवाद पद्धतियों का विस्तृत लेखा-जोखा है ।
आचार के कुछ सूत्र अपरिवर्तनीय होते हैं, तो बहुत सूत्र देश - काल सापेक्ष परिवर्तनीय हैं। उक्त ग्रंथों में परिवर्तन का दीर्घकालिक इतिहास है । परिवर्तन व्याख्या में सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक आदि विषयों का
आकलन भी उपलब्ध है ।
प्रस्तुत ग्रंथ छेदसूत्रों पर आधारित है । छेदसूत्रों में अनेक विषय चर्चित हैं। उनका विस्तार भाष्य और चूर्णि में मिलता है। आचारचूला छेदसूत्रों की परिगणना में नहीं है, पर उसका निशीथ से बहुत संबंध है, इसलिए प्रस्तुत श में इसे छेदसूत्रों के साथ संबद्ध किया गया है।
छेदसूत्र प्रायश्चित्तसूत्र हैं। ज्ञान का सार आचार है। आचारशुद्धि ही साधक को लक्ष्य तक पहुंचाती है किन्तु प्रमाद के कारण साधक से स्खलना होती रहती है । छेदसूत्र उन स्खलनाओं की शुद्धि की प्रक्रिया प्रस्तुत करते हैं, उसकी शोधि का मार्गदर्शन करते हैं। इसलिए अर्थ की दृष्टि से पूर्वगत को छोड़कर अन्य आगमों की अपेक्षा इन्हें बलवान् माना गया है।
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प्राचीनकाल में जैन, बौद्ध और तापस- इनके बड़े-बड़े संघ होते थे । उनमें परस्पर मतभेद होते और कलह का वातावरण भी बनता था । प्रस्तुत आगम विषय कोश का अधिकरण प्रकरण उनकी एक यथार्थ व्याख्या है। अधिकरण की उत्पत्ति के मुख्य छह कारण हैं- - १. सचित्त, २ अचित्त, ३. मिश्र, ४ वचोगत, ५. परिहारकुल, ६. देश - कथा - इनसे संबंधित असद् प्रवृत्ति के निवारण की प्रेरणा के पश्चात् सम्यक् प्रवृत्त न होने पर कलह उत्पन्न होता है ।
१- ३. सचित्त, अचित्त, मिश्र - शैक्ष, वस्त्र - पात्र अथवा उपकरण सहित शैक्ष-ये जिनके हैं, उन्हें नहीं सौंपा जाता है, अनधिकृत को ग्रहण किया जाता है या पूर्वगृहीत की मार्गणा की जाती है, उसे अस्वीकृत करने पर वितथ प्रतिपत्ति के कारण कलह हो सकता है।
४. वचोगत - शिष्य द्वारा एक सूत्र का दूसरे सूत्र में मिश्रण कर परावर्तन किया जाता है, सूत्रपदों के उच्चारण में अक्षरों की न्यूनाधिकता की जाती है, उसे प्रेरणा देने पर वह सम्यक् प्रवृत्त नहीं होता, तब कलह हो सकता है। देशांतर में देशी भाषा के प्रयोग का उपहास किए जाने पर, दूसरे के शब्दों का अनुकरण (नकल) करने पर तथा वक्तव्य वचनों में व्यत्यय करने पर कलह हो सकता है।
५. परिहारकुल - स्थापनाकुलों की स्थापना न करने पर, स्थापित कुलों में निष्कारण प्रवेश करने पर अथवा कुत्सित कुलों में प्रवेश करने पर निषेध किया जाता । निषेध करने पर भी प्रवेश से उपरत नहीं होने पर कलह हो सकता है।
६. देशकथा - देश - अनुराग के कारण अपने-अपने देश की गौरवगाथा करने पर या परस्पर एक दूसरे की हीनता दिखाने का प्रयत्न होने पर कलह हो सकता है ।
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