________________
भाषाभास्कर
५
.
हैं उनका कुछ भी रूप नहीं दिखाई देता इसलिये कोई कोई व्यंजनों के साथ वर्णमाला के अंत में इन्हें लिख देते हैं । क और घ के मेल से न और त् और र के योग से च और ज और जमिनके ज्ञ बन गया है | "
२६ प्रायः संयोग में आदि के व्यंजन का आधा और अंत के व्यंजन · का पूरा स्वरूप लिखा जाता है। जैसे विस्वा प्यास मन्दिर इत्यादि में ॥
__३० ङ छ ट ठ ड ढ ये छः घ्यंजन ऐसे हैं जो संयोग के आदि में भी परे ही लिखे जाते हैं। जैसे चिट्ठी टिड्डी आदि में ॥
३१ रकार जब संयोग के आदि में होता है तब उसके सिर पर लिखा जाता है और उसे रेफ कहते हैं। जैसे पूर्व धर्म आदि में । परंतु जब रकार संयोग के अंत में आता है तो आदि के व्यंजन के नीचे इस रूप से - लिखा जाता है। जैसे शक चक्र मुद्रा आदि में |
३२ हिन्दी भाषा में संयोग बहुधा दो अक्षरों के मिलते हैं, परंतु कभी २ तीन अक्षरों के भी आते हैं। जैसे स्त्री मन्त्री मद्धा इत्यादि ॥
३३ प्रत्येक सानुनासिक व्यंजन अपनेही वर्ग के अक्षरों से युक्त हो सकता है और दूसरे वर्ग के वर्णों के साथ कभी मिलाया नहीं जाता परंतु अनुस्वार बना रहता है। जैसे पङ्कज चञ्चन घण्टा छन्द थाम्मना गंगा ऊंट इत्यादि ॥ __ ३४ यदि अनुस्वार से परे कवर्ग आदि रहें तो उसको भी ङकाय
आदि सानुनासिक पञ्चम वर्ण करके ककार आदि में मिला देते हैं । जैसे अङ्क शान्त इत्यादि ॥
३५ यदि किसी वर्ग के दूसरे वा चौथे अक्षर का द्वित्व हो तो संयोग के आदि में उसी वर्ग का पहिला वा तीसरा अक्षर आवेगा जैसे गफुफागपफा आदि ।
३६ संयोग में जो अक्षर पहिले बोले जाते हैं वे पहिले लिखे जाते हैं और जिनका उच्चारण अंत में होता है उन्हें अंत में लिखते हैं। जेसे शब्द अब अन्त्य इत्यादि ।
अक्षरों के उच्चारण के विषय में । ३० मुख के जिस भाग से किसी अक्षर का उच्चारण होता है उसी . भाग को उस पक्षर के उच्चारण का स्थान कहते हैं।
र
Scanned by CamScanner