Book Title: Bhasha Bhaskar Arthat Hindi Bhasha ka Vyakaran
Author(s): Ethrington Padri
Publisher: Ethrington Padri

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Page 8
________________ भाषाभास्कर माचिक कहते हैं और जिनके बोलने में इसका दना काल लगे वे दीर्व अथवा द्विमाचिक कहाते हैं। जेसे अह उ ऋ ल ये ह्रस्व वा एकमाधिक हैं। आ ई ऊ ऋ तृ ए ऐ ओ औ ये दीर्घ वा द्विमाचिक हैं। ए ऐ ओ औ ये दीर्घ और संयुक्त भी हैं ॥ १६ जिस स्वर के उच्चारण में हस्व के उच्चारण से तिगुना काल लगता है उसे प्लत वा चिमाचिक कहते हैं और उसका प्रयोजन हिन्दी भाषा में थोड़ा पड़ता है केवल पकारने और चिल्लाने आदि में बोला जाता है। उसके पहचानने को दीर्घ के ऊपर तीन का अंक लिख देते हैं। जेसे हे मोहना ३ यहां अंत्य स्वर को लत बोलते हैं | २० अकार आदि स्वर जब व्यंजन से नहीं मिले रहते तब उन्हें स्वर कहते हैं और वे पूर्वोक्त आकार के अनुसार लिखे जाते हैं परंतु जब ककार आदि व्यंजनों से मिलते हैं तो इनका स्वरूप पलट जाता है और ये माना कहाते हैं। प्रत्येक स्वर के नीचे उसकी मात्रा लिखी है ॥ अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ तृ तृ ए ऐ ओ ओ । .. . . . । । व्यंजनों के विषय में ॥ २१ सम्पर्ण व्यंजनों के सात विभाग हैं। वर्णमाला के क्रम के अनुसार ककार से लेकर मकार लो जो पचीस व्यंजन हैं जिन्हें संस्कृत में स्पर्श कहते हैं उन में पांच वर्ग होते हैं और शेष आठ व्यंजनों के दो भाग हैं अर्थात अंतस्थ और ऊष्म । जेसे ।। क ख ग घ ङ यह क- वर्ग है। " च- वर्ग ट ठ ड ढ ण ट- वर्ग त थ द ध न त- वर्ग - वर्ग ये अंतस्थ हैं। ये ऊष्म हैं। २२ प्रयत्न के अनुसार व्यंजनों के दो भेद होते हैं अर्थात अल्पपाय श्रार महाप्राण । प्रत्येक वर्ग के पहिले और तीसरे अक्षरों को अल्पप्राण और 431 AN A Scanned by CamScanner

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