Book Title: Bhadrabahu Charitra Author(s): Udaychandra Jain Publisher: Jain Bharti Bhavan Banaras View full book textPage 9
________________ १६२५ के आस पास उनका होना जाना जाता है यह बात भद्रबाहुपरिनमें इंटियोंकी उत्पत्तिसे जानी जाती है। . दूसरे भद्रवाहु-चारिक बनानेवाळे रखनन्दी तयारतकीर्ति के एक होनेमें यह भी एक प्रमाण मिलता है कि जहां परिच्छेद पूरा होता है वहां-रवनन्दी तथा रनको इन दोनोंका नाम पाया जाता है। इस लिये यही निश्चित होता है कि मद्रयाहु-परित्रके बनाने वाले दोनों महानुभाव एकही है। वैसे रनकोचि और भी हुये हैं। पाठक यदि इस विषयमें परिचित हों तो अनुग्रह करें पुनरावृश्चिमें ठीक कर . दिया जावेगा। . ' रजनन्दी किस कुलमें तथा किस देशमें हुये हैं यह ठीकर नहीं जाना जा सकता। जिससे कि हम उनके विषयमेंछ और विशेष लिख सकें। और न हमारे पास विशेष साधन ही है। रखनन्दीने भद्रवाहुचरित्रमें एक जगहें यह लिखा है कि तांशुफमतोद्भूतमूढान् भापयितुं जनान् । । । • व्यरीरचमिर्म ग्रन्यं न स्त्रपाण्डित्यगतः ॥ . . . इससे यह माना जाता है कि उनके भगवाहुचरित्रके लिखनेका “मसली अमिमाय वेताम्बर मतकी उत्पति तथा उसकी जिन शासनसे बाहितता बताना था।इम भी कुछ प्रकर्णानुसार श्वेताम्बर मतके यादव विचार करेंगे-पाठक जरा पक्षपात रहित वालिक दृष्टिसे दोनों मतकी । तुलना करें कि प्राचीन मत कौन है ? और कौन उपादेय क्या जीवोंक सुखका साधन है। श्वेताम्बर और दिगम्बरोंमें जो मत भेद है वह तो रहे । सबसे पहले हम अपने लेख में यह बात सिद्ध करेंगे कि दोनों में प्राचीन मन कोन है ? और किसका पीछेसे प्रादुर्भाव हुआ है ? इस विषयका पर्या'लोचन करनेसे दोनों मत वाले दोनों की उत्पचि अपने २ से कहते हैं। - इसलिये. हम सबसे पहले दोनोंकी ओरसे एक २ की उत्पत्रिका उपक्रम दोनों सम्प्रदायके अन्योंके अनुसार लिखे देते है.--::Page Navigation
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