Book Title: Bhadrabahu Charitra Author(s): Udaychandra Jain Publisher: Jain Bharti Bhavan Banaras View full book textPage 8
________________ अन्तर नहीं दीखता । इससे भी यही प्रतीत होता है कि रजनन्दीको हो सुदर्शन-परित्रके रचयिता विद्यानन्दीने रवीति लिखा है। विद्यानन्दी भट्टारक हैं। इनके गुरु का नाम है देवेन्द्रकीति जैसाल सुदर्शन चरित्रके इस लेखसे जाना जाता है-- जीवानीवादितत्वानां समयोनदिवाकरम् । . भन्दे देवेन्द्रकीर्षि च मरिचय दयानिधिम् ।। मगुरुपोंविषेण दीक्षालक्ष्मीप्रसादकत् । । तमहं भक्तितोवन्दे विद्यानन्दी सुसेवकः ।। मावार्थ-जीवाऽजीबादि पलों के प्रकाश करनेमें सूर्यकी अमा धारण करने वाले और इयासागर श्रीदेवेन्द्रकीचि आचार्यके लिये में अभिवन्दन करता है। जो विशेषतया मेरे गुरु हैं। इन्हीं के द्वारा मुझे दीक्षा मिली है। देवेन्द्रकीति भट्टारक विक्रम सन्दत १६६२ में सागानेरके पट्टपर नियोजित हुये थे। इनके बनाये हुये बहुत से कथाकोषादि अन्य हैं। इससे यह सिद्ध वो ठीक तरह होगया कि सुदर्शन चरित्रके कर्चा विद्यानन्दी भी विक्रम सं० १६६२ के अनुमान हुये है। यह हम ऊपर लिस आये हैं किरनीति और रखनन्दी एकही होने चाहिये। क्योंकि भद्रबाहुचरित्र दोनों के बनाये हुये लिखे हैं।परन्तु रखनन्दीक मंद्रबाहूं. चरित्रको छोड़ कर रखकीका भद्रबाहुचरित्र अभी तक देखने में नहीं आता और.न इन दोनों के समयमें विशेष फर्क है । भद्रबाहुचरित्रके अनुसार जनंन्दीका समय दि. १५२७ के ऊपर जचता है और विद्यानन्दीके सुदर्शनचरित्र के अनुसार रखकीर्चिका समय भी १६६२ के भीतर होना चाहिये। वैसे अन्वर है १५ वर्षका परन्तु विचार करनेसे इवना अन्तर नहीं रहता है। मद्पाहुचरित्र में जो रबन्दीने इंडियोक मतका प्रादुर्भाव वि. १५२७ में हुमा लिखा है इससे रखनन्दीका इढियाँस पछि होना तो सहन सिद्ध है। परन्तु वह कितना पीछे यह 'टीक निश्चय नहीं किया जा सकता यदि अनुमानसे यह कहें कि उस समय इंढियोंकों पैदा हुये सौ सवासौ वर्ष होजाने चाहियें तो वि.Page Navigation
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