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जे से नीला मणी तेसि णं मणीणं इमे एयारूवे वण्णावासे पण्णसे, से जहानामए भिंगेइ वा भिंगपलेइ वा सुएइ वा सुयपिच्छे वा चासेइ वा वासपिच्छे वा नीलीइ वा नीलभेदेइ वा नीलीगुलियाइ वा सामागेइ वा उच्चंत वा हलहरवसणेइ वा मोरग्गीवाइ वा अवसीकुसुमेह वा अंजणकेसियाकुसुमेइ वा नीलुप्पलेइ वा नीलासोगेह वा नीलबंधुजीवगेइ वा नीलकणवीरेइ वा भवे एयारूवे १, नो इणट्ठे समट्ठे, ते णं नीला मणी तत्तो इट्ठतरा चैव कंततरा चैव मणुन्नतरा | चेव मणामतरा चैव वन्नेणं पन्नत्ता, अत्र भृङ्गः कीटविशेषः, पक्ष्मलं भृङ्गपत्रं तस्यैव भृङ्गाभिधानस्य कीटविशेषस्य पक्ष्म, उच्चंतगो दन्तरागः, हलधरो -बलदेवस्तस्य वसनं हलधरवसनं तच किल नीलं भवति, सदैव तथा स्वभावतया हलधरस्य नीलवस्त्रपरिधानात्, अञ्जनकेशिका - वनस्पतिविशेषः । तत्थ णं जे ते लोहिया मणी तेसि णं मणीणं इमे एयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते से जहानामए उरब्भरुहिरेइ वा ससगरुहिरेइ वा नररुहिरेइ वा वराहरुहिरेइ वा बालिंदगोपगेइ वा बालदिवागरेइ वा संशम्भरागेइ वा गुंजद्धरागेइ वा जासुमणकुसुमेइ वा किंसुयकुसुमेइ वा पारिजातकुसुमेइ वा जायहिंगुलए वा | सिलप्पवालेइ वा पवालंकुरेइ वा लोहियक्खमणीइ वा लक्खारसगेइ वा किमिरागकंबलेइ वा चीणपिडरासीइ वा रतुप्पलेइ वा रत्तासोगेइ वा रक्तकणवीरेइ वा रत्तबंधुजीवेइ वा भवे एयारूवे ?, नो इणट्ठे समट्ठे, ते णं लोहिया मणी पत्तो इद्वतरा वेव कंततरा चैव मणुण्णतरा व मणामतरा चेव वण्णेणं पण्णत्ता, उरस्वादिरुधिराणि शेषरुधिरेभ्यो लोहितवर्णोत्कटानि भवन्तीति तेषामुपादानं, बालेन्द्रगोपकः - सद्योजात इन्द्रगोपकः, स हि प्रवृद्धः सन् ईषत्पाण्डुरको भवति ततो बालग्रहणं, | शिलाप्रवालं - प्रवालनामा रक्तविशेषः प्रवालाङ्कुरः-तस्यैव रक्षविशेषस्याङ्कुरः । तत्थ णं जे ते हालिहा मणी तेसि णं मणीणं
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