Book Title: Avashyakasutram Part_1
Author(s): Bhadrabahuswami, Malaygiri,
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
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स्पोद्धातनिर्युक्तो श्रीवीर- चरित
अच्छन्दका
॥२७२॥
पलप्रमाणं करोटकं गृहीत्वा महिपेन्दुवृक्षस्याधः स्थापित, एकं तावदिदं, द्वितीयमिन्द्रशर्मण उरणकोऽनेन भक्षितः, तस्यास्थीनि घाद्यापि बदर्या अधो दक्षिणे पाचँ उत्कुरटिकायां तिष्ठन्ति ॥ ततो सिद्धत्थो भणइ-तइयं पुण अवच्चं, अलाहि तेण कहिएण, ताहे ते निबंधं करेंति, पच्छा भणइ-भज्जा से कहिहेइ, सा पुण तस्स चेव छिद्दाणि मग्गमाणी अच्छइ, ताहे ताए सुयं-जहा सो विधंमितो अंगुलीतो से छिन्नातो, सा य तेण तदिवसं पिट्टिया, सा चिंतेइनवरि एउ गामो ताहे साहामि, आगया ते, गामपुरिसा पुच्छिति, सा भणइ-मा से नाम गिण्हह, भगिणीए पइत्तणं करेइ, ममं नेच्छइ, ताहे उक्कुहिं करेमाणा तं भणंति,-एस पावो, एवं तस्स उड्डाहो जातो जहा न कोऽपि भिक्खपि देइ, ताहे सो अप्पसागारियं आगतो भणइ-भयवं! तुन्भे अन्नत्थवि पुजा, अहं कहिं जामि ?, ताहे अचियत्तोग्गहोत्तिकाऊण |सामी निग्गतो, ततो वच्चमाणस्स अंतरा दो वाचालातो-दाहिणवाचाला य उत्तरा चावाला च, तासिं दोण्हवि अंतरा दो नदीतो, तंजहा-सुवण्णवालुगा रुप्पवालुगा य, ताहे सामी दाहिणचावालातो संनिवेसातो उत्तराचावालं बच्चइ, तत्थ सुवण्णवाल्याए नदीए पुलिणे कंटियाए तं वत्थं विलग्गं, सामी गतो, पुणो अवलोइयं, किं निमित्तं ?, केइ। भणंति-जहा ममत्तीए, अवरे भणंति-किं थंडिल्ले पडियं अथंडिल्ले वा !, अण्णे भणंति-सहसाकारेणं, केई पुण एवं| वयंति-सुलभं वत्थपत्तं सिस्साणं भविस्सइ दुलहं वा!,एयनिमित्तमवलोइयं, तं च भगवया तेरस मासे अहाभावेण धरियं, ततो वोसिरियं, ततो सामी अचेलए विहरइ, तं च तेण पिउवयंसधिज्जाइएण गहिय, तुण्णागस्स उवणीयं, सयसहस्समोल्लं जायं, इमस्सवि पण्णासं सहस्साई पण्णासं सहस्साई जायाई ॥ अमुमेवार्थमाह
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