Book Title: Avashyakasutram Part_1
Author(s): Bhadrabahuswami, Malaygiri,
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
View full book text
________________
FACACANCCCCCCCCCC
य, जहिवसं सावगो न जेमेइ तदिवस न जेमेति, तस्स सावगस्स भावो जातो-जहा इमे भविया उवसंता, अब्भ-15 हिओ य नेहो जातो, ते स्वस्सिणो, तस्स य सावगस्स मित्तो, तत्थ भंडीरमणजत्ता, तारिसा नत्थि अन्नस्स बइल्ला, ताहे ते भंडीए जोइता णीया अणापुच्छाए, तत्थ अण्णेणवि अनेणवि समं वादं कारिया, ताहे छिन्ना, तेण ते आणे बद्धा, न चरंति न य पाणियं पियंति, जाहे सबहा नेच्छंति ताहे सो सावतो भत्तं पञ्चक्खाइ नमोक्कारं च देइ, ते काठगया नागकुमारेसु उववन्ना, ओहिं पउंजंति, जाव पेच्छंति तित्थगरस्स उवसर्ग कीरमाणं, ताहे णेहिं चिंतियं-अलाहि ता अनेण, सामि मोएमो, आगया, एगेण नावा गहिया, एगो सुदाढेण समं जुन्झइ, सो महिडिगो, तरस पुण चवणकालो, इमे णु अहुणोववन्नया, सो तेहिं पराइतो, ताहे ते नागकुमारा तित्थयरस्स महिमं करेंति, सत्तं रूवं च गायंति, एवं लोगोऽवि । ततो सामी उत्तिन्नो, तत्थ देवेहिं सुरहिगंधोदयवासं पुप्फवासं च वुढे, तेऽवि पडिगया॥ अमु. मेवार्थमुपसंहरन्नाहसुरभिपुर सिद्धदत्तो गंगा कोसिय विऊ य खेमलतो । नागसुदा सीहे कंबलसबलाण जिणमहिमा ॥४६॥ महुराए जिणदासो आभीर विवाह गोण उववासो। भंडीरमणमित्त बच्चे भत्ते नागोहिआगमणं ॥४७॥ वीरवरस्स भगवतो नावारूढस्स कासि उवसग्गं । मिच्छादिटिपरद्धं कंवलसबला समुत्तारे ॥ ४७१ ॥
सुरभिपुरं भगवान् गतः, तत्र गङ्गा नाम नदी, सिद्धयात्रो नाम नाविकः, तत्र नावमारोहति, जने कौशिको महाशकुनापरपयोयो वासितवान् , खेमलकश्च शकुन विद्वान् अवादीत-यदि परमेतस्य भगवतः प्रभावेन जीवाम इति,
Jain Education International
For Private & Personal use only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618