Book Title: Avashyakasutram Part_1
Author(s): Bhadrabahuswami, Malaygiri,
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
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उपोद्घातनिर्युकौ श्रीवीरचरिते
॥ २५७ ॥
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क्षौमं-देववस्त्रं कुण्डलयुगलं- कर्णाभरणं श्रीदाम अनेकरलखचितं दर्शनसुभगं ददाति शक्रः 'से' तस्मै भगवते, मणयः- चन्द्रकान्ताद्याः कनकं प्रतीतं रत्नानि - कर्केतनादीनि तद्वर्षमुपक्षिपन्ति जृम्भकाः व्यन्तरविशेषा देवाः ॥ एतदेवाहवेसमणवयणसंचोइया उ ते तिरियजंभगा देवा । कोडिग्गसो हिरण्णं रयणाणि य तत्थ उवर्णेति ॥ ६८ ॥ भा०॥
वैश्रमणवचनसञ्चोदितास्ते तिर्यग्लोके जृम्भकाः तिर्यग्जृम्भका देवाः कोव्यग्रशः- कोटीपरिमाणेन हिरण्यमघटितं (स्वर्ण) रत्नानि - इन्द्रनीलादीनि तत्रोपनयन्ति ॥ सिद्धत्थोऽवि राया भयवंमि तिहुयणनाहे जाते कोटुंबिय पुरिसे सद्दावित्ता दसदेवसियं उस्सुकं उक्करं अदेजं अमेज्जं अभडप्पवेसं सवत्थ सियपडागातिपडागं नाडगसहस्ससंकुलं महइमहोरसवं निद्यत्तावेइ, तते णं अम्मापियरो दारगस्स तइयदिवसे चंदसूरदंसणं करेंति, छट्ठदिवसे जागरियं करेंति, एक्कारसमे दिवसे अइकंते निवत्ते असुइजायकम्मकरणे संपत्ते बारसमे दिवसे विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावित्ता मित्तनाइसयणपरिजणं नायए य खत्तिए य भोयणवेलाए आमंतित्ता भोयणमंडवंसि तेहिं सद्धिं सुहासणवरगया विउलं असणं जाव साइमं परिभुंजेमाणा विहरंति, तए णं भुत्तत्तरकालं ते विउलेण वत्थगंधमलालंकारेणं सकारेंति संमार्णेति सक्कारित्ता सम्माणित्ता एवं वयासी - पुबिंपिय णं देवाणुप्पिया ! अम्हं एयारूवे संकपे समुप्पन्ने-जप्पभिई च णं अम्हं एस दारए कुच्छिसि समुप्पन्ने तप्पभिई च णं अम्हे हिरण्णेणं वड्ढामो जाव एयस्स एयाणुरूवं गोण्णं नामधेजं करेस्सामो वडमाण इति, तं होउ णं अज मणोहरसंपत्ती कुमारे नामेणं वद्धमाण इति नामधेज्जं करेंति । गतमभिषेकद्वारम् अधुना | वृद्धिद्वारं प्रतिपादयति-
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जन्माभिषेकः ना
मकरणं
॥ २५७ ॥
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