Book Title: Avashyakasutram Part_1
Author(s): Bhadrabahuswami, Malaygiri, 
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 551
________________ चरिते पारणंच सपोद्धात-1 ते वइला चांता अडविं पविद्वा, सो गोवो गामातो निग्गतो वइले न पेछा, ततो सामि पुच्छर-कहिं बहला कारे का. निर्युकीसामी सुण्हिको अच्छइ, सो चिंतइ-एस न याणइ, ताहे मग्गिउं पयत्ती, सवरसिपि से बइला सुधिरं भमित्ता गामसमी- योत्सर्गः श्रीवीर- 18 बमागया माणुसं दृष्ट्रण रोमंथंतः अच्छति, ताहे सो आगतो, ते बइले तत्थेव निविटे पेच्छइ, ताहे आसुरुयो, एएणगोपोपद्रव दामएण आहणामि, एएण मम बइल्ला हरिया, पभाए घेत्तण वञ्चीहामित्ति, साहे सक्को देवराया चिंतेइ-कि बज सामी पढमदिवसे करेइ !, जाव पेच्छइ तं गोवं धावंत, ताहे सो तेण थंभिओ, परछा आगतो तं सजेइ-दुरण! मयाणसि ॥२६७॥ सिद्धत्थरायपुत्तो एस पवइतो, एयंमि अंतरे सिद्धत्यो सामिस्स माउस्सियापुत्तो चालतवोकम्मेण वाणमंतरो जातो, ताहे सको भणइ-भयवं । सुन्झ उवसग्गबहुलं, अहं वारस वरिसाणि तुझं वेयावचं करेमि, ताहे सामिणा भणियं-नो खलु देविंदा! एवं भूयं वा भवइ वा भविस्सइ पा जंणं अरहंता देविदाण वा असुरिंदाण वाणीसाए केवलनाणमुप्पाहै| इंसु उपायंति उप्पाइस्संति वा, तवं वा करिंसु चा करेंति वा करिस्संति वा, अरहता सएण उठाणबलवीरियपुरिस कारपरकमेणं केवलनाणमुप्पाईसु उप्पायति उप्पाइस्संति वा, ताहे सक्केण सिद्धत्थो भण्णइ-एस तव नियल्लतो, पुणोऽवि मम वयणं, सामिस्स जो मारणांतियउवसगं करेइ तं वारेहि, तेण पडिस्सुयं-एवं होउ, सको पडिगतो, सिद्धत्थो ठितो, तद्दिवसं सामिस्स छट्ठभत्ते पारणगं, ततो भयवं कोलागे संनिवेसे भिक्खापविष्ठो घयमहुसंजुत्तेणं परमण्ण बहु ॥२६॥ लेण माहणेण पडिलाभितो, तत्व पंच दिखाई पाउन्भूयाई । एतदेवाह गोवनिमित्तं सकस्स आगमो वागरेइ देविंदो। कुल्लाग पहल छहस्स पारणे पयस वसुहारा ॥४६१। Jain Education Internati For Private & Personal use only www.jainelibrary.org

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