Book Title: Avashyakasutram Part_1
Author(s): Bhadrabahuswami, Malaygiri,
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
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उपोदात- अभिग्गहा गहिया, इह सपात्रो धम्मों मया प्रज्ञापनीय इति प्रथमपारणकं गृहस्थपात्रे बभूव, ततः पाणियात्रभोजिना अभिग्रहनियुक्ती
मिया भवितव्यमित्यभिग्रहो गृहीतः, तथा च गोशालकेन तन्तुवायशालायां किलेदमुक्तम्-भगवन्नहं तव भोजनमा- पञ्चकं शश्रीवीर-III
IN नयामि गृहस्थपात्रे कृत्वा, भगवता न प्रतिपन्नम्, उत्पन्न केवलज्ञानस्य तु लोहार्य आनीतवान् , तथा चोक्तं- लपाणिचरिते
181"धन्नो सो लोहजो खंतिखमो पवरलोहसरिवन्नो। जस्स जिणो पत्ताओ इच्छइ पाणीहिं भोत्तुं जे ॥१॥" अथोत्पन्नेऽपि पर्वभवः ॥२६॥
केवलज्ञाने कस्मान्न भिक्षार्थ भगवानटति !, उच्यते, तस्यामवस्थायां भिक्षाटने प्रवचनलाघवसम्भवात् , उक्तं च"देविंदचक्कवट्टी मंडलिया ईसरा तलवरा य । अभिगच्छंति जिणिंदं गोयरचरियं न सो अडइ ॥१॥" एतत्प्रसङ्गत उक्तम् , एवं तत्र भगवान् अर्द्धमार्स स्थित्वा ततो पच्छा अट्ठियगामं गतो, तस्स पुण अद्वियगामस्स पढमं वद्धमाणय-18 मिति नाम होत्था । सो य किह अद्वियगामो जातो?, भण्णइ। धणदेवो नाम वाणियओ, पंचहिं सगडसरहिं गणिमधरिममेजभरिएहिं तस्संतेणागतो, तस्स समीवे वेगवई नाम नदी. तं सगडाणि उत्तरंति, तस्स एगो बइल्लो सो मूलधुरे जुप्पइ, तस्स बलेण ताणि सगडाणि उत्तिन्नाणि, पच्छा सो तुहो। पडिओ, सो बाणियतो तस्स तणपाणियं पुरतो छड्डेऊण तं अवहाय गतो, सोऽवि तत्व वालुगाए जेट्ठामूलमासे अईव उण्हाए तण्हाए छुहाए य परिताविजइ, बद्धमाणवत्यवगो य लोगो तेणंतेणं पाणियं तणं च वहइ, न य तस्स कोइवि देइ, ततोऽसौ गोणो तस्स पदोसमावन्नो, अकामतण्हाए छुहाए य मरिऊणं तत्थेव गामे अग्गुजाणे सूलपाणी जक्खो उप्पण्णो, उवउत्तो पासइ तं बलहसरीरं वाहे रुसितो मारि विउवइ, सो गामो मरिउमारद्धो, ततो अद्दन्ना कोउगसयाणि
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