Book Title: Avashyak Sutram Part 03
Author(s): Punyakiritivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
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________________ 4. चतुर्थमध्ययनम् प्रतिक्रमणं, श्रीआवश्यक नियुक्तिभाष्यश्रीहारि० वृत्तियुतम् भाग-३ // 1281 // 4.5 त्रयस्त्रिंशत्स्थानम्। सूत्रम् 23(24) तेत्तीसाए आसायणाहि। // अथ चतुर्थाऽध्ययने त्रयस्त्रिंशत्स्थानम् // तेत्तीसाए आसायणहिं। सूत्रम् 23 // (24) त्रयस्त्रिंशद्भिराशातनाभिः, क्रिया पूर्ववत्, आय:- समग्दर्शनाद्यवाप्तिलक्षणः तस्याशातना, तदुपदर्शनायाह सङ्गहणिकार: पुरओ पक्खासन्ने गंता चिट्ठणनिसीयणायमणे / आलोयणपडिसुणणा पुव्वालवणे य आलोए॥१॥ तह उवदंसनिमंतणखद्धाईयाण तह अपडिसुणणे।खद्धति य तत्थ गए किंतुम तज्जाइणो सुमणे // 2 // णो सरसि कहं छत्ता परिसं भित्ता अणुट्ठियाइ कहे। संथारपायघट्टण चिढे उच्चासणाईसु // 3 // इहाकारणे रत्नाधिकस्याऽऽचार्यादेः शिक्षकेणाऽऽशातनाभीरुणा सामान्येन पुरतो गमनादिन कार्यम्, कारणे तु मार्गादिपरिज्ञानादौ ध्यामलदर्शनादौ च विपर्ययः अत्र सामाचार्यनुसारेण स्वबुद्ध्याऽऽलोचनीयः, तत्र पुरतः- अग्रतोगन्ताऽऽशातनावानेव, तथाहि-अग्रतो न गन्तव्यमेव, विनयभङ्गादिदोषात्, पक्ख'त्ति पक्षाभ्यामपिगन्ताऽऽशातनावानेव, अतः पक्षाभ्यामपिन गन्तव्यमुक्तदोषप्रसङ्गादेव, आसन्नः पृष्ठतोऽप्यासन्नं गन्तैवमेव वक्तव्यः, तत्र निःश्वासक्षुतश्लेष्मकणपातादयो दोषाः, ततश्च यावता भूभागेन गच्छत एते न भवन्ति तावता गन्तव्यमिति, एवमक्षरगमनिका कार्या, असम्मोहार्थं तु दशासूत्रैरेव प्रकटाथैाख्यायन्ते, तद्यथा-पुरओ त्ति सेहे रायणियस्स पुरओ गंता भवइ आसायणा सेहस्स 1, पक्खत्ति सेहे राइणियस्स पक्खे गंता भवइ आसायणा सेहस्स 2, आसण्णत्ति सेहे राइणियस्स णिसीययस्स आसन्नं गंता भवइ आसायणा सेहस्स 3, 0 तस्याऽऽशातना, 0 पुरत इति शैक्षो रात्निकस्य पुरतो गन्ता भवत्याशातना शैक्षस्य 1, पक्षेति शैक्षो रात्निकस्य पक्षयोर्गन्ता भवत्याशातना शैक्षस्य, 2 आसन्नमिति शैक्षो रत्नाधिकस्य निषीदत आसन्नं गन्ता भवति आशातना शैक्षस्य 3,0

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