Book Title: Avashyak Sutram Part 03
Author(s): Punyakiritivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust

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Page 446
________________ श्रीआवश्यक नियुक्तिभाष्यश्रीहारि० वृत्तियुतम् भाग-३ // 1286 // 4. चतुर्थमध्ययनम् प्रतिक्रमण, |4.5 त्रयस्त्रिंशत्स्थानम्। सूत्रम् 24(25) | अर्हदाधाशातनाः। वा तुयट्टित्ता वा भवइ आसायणा सेहस्सत्ति ३३गाथात्रितयार्थः // 23 // सूत्रोक्ताशातनासम्बन्धाभिधित्सयाह सङ्ग्रहणिकार: अहवा- अरहंताणं आसायणादि सज्झाएँ किंचिणाहीयं / जा कंठसमुद्दिट्टा तेत्तीसासायणा एया॥१॥ प्रतिक्रमणसङ्ग्रहणी समाप्ता॥ अथवा- अयमन्यः प्रकारः, अर्हतां तीर्थकृतामाशातना, आदिशब्दात्सिद्धादिग्रहः यावत्स्वाध्याये किञ्चिन्नाधीतं सजाए ण सज्झाइयंति वुत्तं भवइ, 'एताः कण्ठसिद्धाः' निगदसिद्धा एवेत्यर्थः, त्रयस्त्रिंशदाशातना इति गाथार्थः॥साम्प्रतं सूत्रोक्ता एव त्रयस्त्रिंशव्याख्यायन्ते, तत्र अरिहंताणं आसायणाए सिद्धाणं आसायणाए आयरियाणं आसायणाए उवज्झायाणं आसायणाए साहूणमासायणाए साहुणीणं आसायणाए सावगाणं आसायणाए सावियाणं आसायणाए देवाणं आसायणाए देवीणं आसायणाए इहलोगस्सासायणाए परलोगस्स आसायणाए केवलिपन्नत्तस्स धम्मस्स आसायणाए सदेवमणुयासुरस्स लोगस्स आसायणाए सव्वपाणभूयजीवसत्ताणं आसायणाएकालस्स आसायणाए सुयस्स आसायणाए सुयदेवयाए आसायणाएवायणायरियस्स आसायणाए।सूत्रम् 24 // (25) अर्हता- प्राग्निरूपितशब्दार्थानां सम्बन्धिन्याऽऽशातनया यो मया दैवसिकोऽतिचारः कृतस्तस्य मिथ्या दुष्कृतमिति क्रिया, एवं सिद्धादिपदेष्वपि योज्यते, इत्थं चाभिदधतोऽर्हतामाशातना भवति-नत्थी अरहंतत्ती जाणतो कीस भुंजई भोए। पाहुडियं उवजीवे एव वयंतुत्तरं इणमो॥१॥भोगफलं निव्वत्तियपुण्णपगडीणमुदयबाहल्ला।भुंजइ भोए एवं पाहुडियाए इमंसुणसु॥२॥ - वा त्वग्वर्तयिता वा भवत्याशातना शैक्षस्येति। ॐन सन्ति अर्हन्त इति जानानो वा कथं भुनक्ति भोगान्? / प्राभृतिका(समवसरणादिकं) उपजीवति कथं? | एवं वदत उत्तरमिदम् // 1 // निर्वर्तितभोगफलपुण्यप्रकृतीनामुदयबाहुल्यात्। भुनक्ति भोगान् एवं प्राभृतिकायां इदं शृणु। 2 // - // 1286 //

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