Book Title: Avashyak Sutram Part 03
Author(s): Punyakiritivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
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________________ श्रीआवश्यक नियुक्तिभाष्यश्रीहारिक वृत्तियुतम् भाग-३ // 1338 // सज्झाइयवजणं, करंतो य सुयणाणायारं विराहेइ, तम्हा मा कुणसु॥ 1408 // चोदक आह- जइ दंतमंससोणियाए 4. चतुर्थअसज्झाओ नणु देहो एयमओ एव, कहं तेण सज्झायं कुणह?, आचार्य आह मध्ययनम् प्रतिक्रमणं, नि०- कामं देहावयवा दंताई अवजुआ तहविवज्जा / अणवजुआन वज्जा लोए तह उत्तरे चेव // 1409 // 4.6 अस्वाकामं चोदकाभिप्रायअणुमयत्थे सच्चं तम्मओ देहो, तहवि जे सरीराओ अवजुत्तत्ति- पृथग्भूताः ते वजणिज्जा / जे पुण ध्याय नियुक्तिः। अणवजुत्ता- तत्थत्था ते नो वजणिज्जा, इत्युपदर्शने / एवं लोके दृष्टं लोकोत्तरेऽप्येवमेवेत्यर्थः // 1409 // किं चान्यत्- नियुक्तिः नि०- अम्भिंतरमललित्तोवि कुणइ देवाण अच्चणं लोए। बाहिरमललित्तो पुण न कुणइ अवणेइ यतओणं // 1410 // 1409-11 आत्मसमुत्थेअभ्यन्तरा मूत्रपुरीषादयः तहिं चेव बाहिरे उवलित्तो न कुणइ, अणुवलित्तो पुण अन्भिंतरगतेसुवि तेसु अह अच्चणं करेइ ऽस्वाध्याये // 1410 // किं चान्यत् - व्रणविधिः। नि०- आउट्टियाऽवराहं संनिहिया न खमए जहा पडिमा। इह परलोए दंडोपमत्तछलणा इह सिआउ॥१४११॥ जा पडिमा सन्निहिय त्ति देवयाहिट्ठिया सा जइ कोइ अणाढिएण आउट्टिय त्ति जाणंतो बाहिरमललित्तो तं पडिमं छिवइ अच्चणं व से कुणइ तो ण खमए-खित्तादि करेइ रोगं वा जणेइ मारइ वा, इय त्ति एवं जो असज्झाइए सज्झायं करेइ तस्स स्वाध्यायस्य वर्जनम्, कुर्वश्व श्रुतज्ञानाचारं विराधयति, तस्मात् मा कार्षीः / यदि दन्तमांसशोणितादिष्वस्वाध्यायिकं ननु देह एतन्मय एव, कथं तेन स्वाध्याय कुरुत?.0 चोदकाभिप्रायानुमतार्थे, सत्यं तन्मयो देहः, तथापि ये शरीरात् पृथग्भूतास्ते। वर्जनीयाः, ये पुनः तत्रस्थास्ते न वर्जनीयाः10 तैरेव बहिरुपलिप्तो न8॥१३३८॥ करोति, अनुपलिप्तः पुनरभ्यन्तरगतेष्वपि तेष्वथार्चनां करोति, Oया प्रतिमा देवताधिष्ठिता सा यदि कोऽपि अनादरेण जानानो बाह्यमललिप्तस्ता प्रतिमा स्पृशति अर्चनं वा तस्याः करोति तर्हि न क्षमते- क्षिप्तचित्तादिं करोति रोग वा जनयति मारयति वा, एवं योऽस्वाध्यायिके स्वाध्यायं करोति तस्य 2

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