Book Title: Avashyak Sutram Part 03
Author(s): Punyakiritivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
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________________ श्रीआवश्यक नियुक्तिभाष्यश्रीहारि० वृत्तियुतम् भाग-३ // 1318 // करेंति, पच्छा जाहे गुरू सामाइयं करेत्ता वोसिरामित्ति भणित्ता ठिया उस्सग्गं, ताहे देवसियाइयारं चिंतंति, अन्ने भणंतिजाहे गुरू समाइयं करेंति ताहे पुव्वट्ठियावि तं सामाइयं करेंति, सेसं कंठं॥१३६६॥ नि०- जो हुन्ज उ असमत्थो बालो वुड्डो गिलाण परितंतो। सो विकहाइ विरहिओ अच्छिज्जा निजरापेही // 1367 // परिस्संतो- पाहुणगादि सोवि सज्झायझायणपरो अच्छति, जाहे गुरू ठंति ताहे तेवि बालादिया ठायंति एएण विहिणा // 1367 // नि०- आवासगंतु काउंजिणोवइटुंगुरूवएसेणं / तिण्णि थुई पडिलेहा कालस्स इमा विही तत्थ // 1368 // जिणेहिं गणहराणं उवइ8 ततो परंपरएण जाव अम्हं गुरूवएसेण आगयं तं काउं आवस्सयं अण्णे तिण्णि थुतीओ करिति, अहवाएगा एगसिलोगिया, बितिया बिसिलोइया ततिया (त) तियसिलोगिया, तेर्सिसमत्तीए कालपडिलेहणविही कायव्वा // 1368 // अच्छउ ताव विही इमो, कालभेओ ताव वुच्चइ नि०- दुविहो उ होइ कालो वाघाइम एतरोय नायव्वो / वाघातो घंघसालाएँ घट्टणं सडकहणं वा // 1369 // पुव्वद्धं कंठं, पच्छद्धस्स व्याख्या-जा अतिरित्ता वसही कप्पडिगसेविया य सा घंघसाला, ताए अतिताणं घट्टणपडणाइ कर्षयन्ति, पश्चाद्यदा गुरवः सामायिक कृष्ट्वा व्युत्सृजामीति भणित्वा स्थिता उत्सर्गे तदा दैवसिकातिचारं चिन्तयन्ति, अन्ये भणन्ति- यदा गुरवः सामायिकं कुर्वन्ति तदा पूर्व स्थिता अपि तत् सामायिकं कुर्वन्ति शेषं कण्ठ्यम् / परिश्रान्तः- प्राघूर्णकादिः सोऽपि स्वाध्यायध्यानपरस्तिष्ठति, यदा गुरवस्तिष्ठन्ति तदा तेऽपि बालाद्यास्तिष्ठन्ति एतेन विधिना। Oजिनैर्गणधरेभ्य उपदिष्टं ततः परम्परकेण यावदस्माकं गुरूपदेशेन आगतं तत् कृत्वाऽऽवश्यकं अन्ये तिस्रः स्तुतीः कुर्वन्ति, अथवा एका एकश्लोकिका द्वितीया द्विश्लोकिका तृतीया त्रिश्लोकिका, तासां समाप्तौ कालप्रतिलेखनाविधिः कर्त्तव्यः / तिष्ठतु तावत् विधिरयम्, कालभेदस्तावदुच्यते। 0 पूर्वार्धं कण्ठ्यम्, पश्चार्धस्य व्याख्या- याऽतिरिक्ता वसतिः कार्पटिकासेविता च सा घवशाला तस्यां गच्छतां घट्टनपतनादि--- 4. चतुर्थमध्ययनम् प्रतिक्रमणं, ४.६अस्वाध्यायनियुक्तिः। नियुक्तिः 1367-69 मनुष्यरुधिरादौ अस्वाध्यायः। // 1318 //

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