Book Title: Avashyak Sutram Part 03
Author(s): Punyakiritivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
View full book text
________________ श्रीआवश्यक नियुक्तिभाष्यश्रीहारिक वृत्तियुतम् भाग-३ // 1320 // मनुष्य दिसा दीसंति, उडुमि जइ तिन्नि तारा दीसंति, जइ पुण न उवउत्ता अणिठ्ठो वाइंदियविसओ दिसत्ति दिसामोहो दिसाओवा ४.चतुर्थतारगाओ वा न दीसंति वासंवा पडइ, असज्झाइयं वा जायं तो कालवहोत्ति गाथार्थः // 1371 // किं च मध्ययनम् प्रतिक्रमणं, नि०- जइ पुण गच्छंताणं छीयंजोईततो नियत्तेति / निव्वाघाए दोण्णि उ अच्छंति दिसा निरिक्खंता // 1372 // 4.6 अस्वातेसिं चेव गुरुसमीवा कालभूमी गच्छंताणं अंतरे जइ छीतं जोति वा फुसइ तो नियत्तंति / एवमाइकारणेहिं अव्वाहया ते ध्याय नियुक्तिः। दोवि निव्वाघाएण कालभूमी गया, संडासगादिविहीए पमजित्ता निसन्ना उद्धट्ठिया वा एक्केको दो दिसाओ निरिक्खंतो नियुक्तिः अच्छइत्ति गाथार्थः॥१३७२ // किं च-तत्थ कालभूमिए ठिया 1372-74 नि०-सज्झायमचिंतता कणगंदळूण पडिनियत्तंति / पत्ते य दंडधारी मा बोलं गंडए उवमा॥१३७३ // रुधिरादौ तत्थ सज्झायं(अ) करेंता अच्छन्ति, कालवेलं च पडियरेइ, जइ गिम्हे तिण्णि सिसिरे पंच वासासु सत्त कणगारंति अस्वाध्यायः। (पडंति) पेच्छेन्ज तहा विनियत्तंति, अह निव्वाघाएणं पत्ता कालग्गहणवेला ताहे जो दंडधारी सो अंतो पविसित्ता भणइबहुपडिपुण्णा कालवेला मा बोलं करेह, एत्थ गंडगोवमा पुव्वभणिया कज्जइत्ति गाथार्थः // 1373 / / नि०- आघोसिए बहूहिं सुयंमि सेसेसु निवडए दंडो। अह तं बहूहिं न सुयं दंडिज्जइगंडओ ताहे // 1374 // दिशो दृश्यन्ते, ऋतौ यदि तिम्रस्तारका दृश्यन्ते, यदि पुनर्नोपयुक्तौ अनिष्टो वेन्द्रियविषयो दिगिति दिग्मोहो दिशो वा तारका वा न दृश्यन्ते वर्षा वा पतति अस्वाध्यायिकं वा जातं तर्हि कालवधः। 0 तयोरेव गुरुसमीपात् कालभूमिं गच्छतोरन्तरा यदि क्षतं ज्योतिर्वा स्पशति तदा निवर्त्तते. एवमादिकारणैरव्याहतौ तौ8 द्वावपि निर्व्याघातेन कालभूमिं गतौ संदंशकादिविधिना प्रमृज्य निषण्णौ ऊर्ध्वस्थितौ वा एकैको द्वे दिशे निरीक्षमाणस्तिष्ठति, तत्र कालभूमौ स्थितौ / तत्र स्वाध्यायं कुर्वन्तौ तिष्ठतः कालवेलां च प्रतिचरतः, यदि ग्रीष्मे त्रीन् शिशिरे पञ्च वर्षासु सप्त कणकान् पश्येतां पततस्तदा विनिवर्तेते, अथ निर्व्याघातेन प्राप्ता कालग्रहणवेला तदा यो दण्डधरः सोऽन्तः प्रविश्य भणति- बहुप्रतिपूर्णा कालवेला मा बोलं कुरुत, अत्र गण्डकोपमा पूर्वभणिता क्रियते। // 1320 //

Page Navigation
1 ... 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508