Book Title: Avashyak Sutram Part 03
Author(s): Punyakiritivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
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________________ श्रीआवश्यक नियुक्तिभाष्यश्रीहारि० वृत्तियुतम् भाग-३ // 1287 // 4. चतुर्थमध्ययनम् प्रतिक्रमणं, |4.5 त्रयस्त्रिंशस्थानम्। सूत्रम् |24(25) | अर्हदाद्याशातनाः। णाणाइअणवरोहकअघातिसुहपायवस्स वेयाए। तित्थंकरनामाए उदया तह वीयरायत्ता॥३॥ सिद्धानामाशातनया, क्रिया पूर्ववत्-सिद्धाणं आसायण एव भणंतस्स होइ मूढस्स / नत्थी निच्चेट्ठा वा सइवावी अहव उवओगे॥१॥रागद्दोसधुवत्ता तहेव अण्णन्नकालमुवओगो। दंसणणाणाणं तू होइ असव्वण्णुया चेव // 2 // अण्णोण्णावरणभ(ता) वा एगत्तं वावि णाणदसणओ। भण्णइ नवि एएसिंदोसोएगोवि संभवइ ॥३॥अथिति नियम सिद्धा सद्दाओचेव गम्मए एवं / निच्चिट्ठावि भवंति वीरियक्खयओन दोसो हु॥४॥रागद्दोसो न भवे सव्वकसायाण निरवसेसखया। जियसाभव्वा ण जुगवमुवओगो नयमयाओय ॥५॥न पिहूआवरणाओ दव्वट्ठिनयस्स वा मयेणंतु / एगत्तं वा भवई दंसणणाणाण दोण्हंपि॥६॥णाणणय दसणणए पडुच्चणाणंतु सव्वमेवेयं / सव्वं च दंसणंती एवमसव्वण्णुया का उ?॥७॥पासणयंव पडुच्चा जुगवं उवओग होइ दोण्हंपि। एवमसव्वण्णुत्ता एसो दोसोन संभवइ॥८॥आचार्याणामाशातना, क्रिया पूर्ववत्, आशातना तु-डहरो अकुलीणोत्ति य दुम्मेहो दमगमंदबुद्धित्ति / अवियप्पलाभलद्धी सीसो परिभवइ आयरिए॥१॥ अहवावि वए एवं उवएस परस्स देंति एवं & ज्ञानाद्यनवरोधकाघातिसुखपादपस्य वेदनाय / तीर्थकरनाम्न उदयात् तथा वीतरागत्वात् / / 3 / / सिद्धानामाशातना एवं भणतो भवति मूढस्य / न सन्ति निश्चेष्टा वा / सदा वाऽपि उपयोगेऽथवा // 1 // ध्रुवरागद्वेषत्वात्तथैवान्यान्यकाल उपयोगात् / दर्शनज्ञानयोस्तु भवत्यसर्वज्ञतैव // 2 // अन्योऽन्यावारकता वा एकत्वं वाऽपि ज्ञानदर्शनयोः। भण्यते नैवैतेषां दोष एकोऽपि संभवति // 3 // सन्तीति नियमतः सिद्धाः शब्दादेव गम्यन्ते एवम् / निश्चेष्टा अपि भवन्ति वीर्यक्षयतो नैव दोषः॥ 4 // रागद्वेषौ न स्यातां सर्वकषायाणां निरवशेषक्षयात् / जीवस्वाभाव्यात् नोपयोगयोगपद्यं नयमताच्च / / 5 // न पृथगावरणात् (ऐक्यं) द्रव्यार्थिकनयस्य वा मतेन तु / एकत्वं वा भवति ज्ञानदर्शनयोर्द्वयोरपि // 6 // ज्ञाननयं प्रतीत्य सर्वमेवेदं ज्ञानं दर्शननयं प्रतीत्य सर्वमेवेदं दर्शनमिति एवमसर्वज्ञता का तु? // 7 // पश्यत्तां वा प्रतीत्य युगपदुपयोगो भवति द्वयोरपि / एवमसर्वज्ञता एष दोषो न संभवति / / 8 // बालोऽकुलीन इति च दुर्मेधा द्रमको मन्दबुद्धिरिति / अपि चात्मलाभलब्धिः शिष्यः परिभवत्याचार्यान् // 1 // अथवाऽपि वदत्येवं- उपदेशं परस्मै ददति एवं - // 1287 //

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