Book Title: Avashyak Sutram Part 03
Author(s): Punyakiritivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
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________________ श्रीआवश्यक नियुक्तिभाष्यश्रीहारि० वृत्तियुतम् भाग-३ // 1294 // 1324 // (19500) इमो दिटुंतोवणओ 4. चतुर्थनि०-राया इह तित्थयरो जाणवया साहू घोसणं सुत्तं / मेच्छो य असज्झाओ रयणधणाइंच नाणाई // 1325 / / मध्ययनम् प्रतिक्रमणं, जहा राया तहा तित्थयरो, जहा जाणवया तहा साहू, जहा घोसणं तहा सुत्तं- असज्झाइए सज्झायपडिसेहंगति, जहा 4.6 अस्वामेच्छो तहा असज्झाओमहिगादि, जहा रयणधणाइ तहाणाणादीणि महिगादीहि अविहीकारिणो हीरंति गाथार्थः // 1325 // ध्यायनि०-थोवावसेसपोरिसिमज्झयणं वाविजो कुणइ सोउ।णाणाइसाररहियस्स तस्स छलणा उसंसारो // 1326 // 8 नियुक्तिः। नियुक्तिः थोवावसेसपोरिसि कालवेलत्ति जंभणियं होइ, एवं सो उत्ति संबंधो, अज्झयणं- पाठो अविसद्दाओ वक्खाणं वावि जो |1325-26 कुणइ आणादिलंघणे णाणाइसाररहियस्स तस्स छलणा उ संसारोत्ति-णाणादिवेफल्लत्तणओ चेव गाथार्थः॥ 1326 // प्रतिज्ञादिः अस्वाध्याय तत्राऽऽद्यद्वारावयवार्थप्रतिपादनायाह भेदाः / नि०- महिया य भिन्नवासे सच्चित्तरए य संजमे तिविहं / दवे खित्ते काले जहियं वा जच्चिरं सव्वं // 1327 // नियुक्तिः महिय त्ति धूमिगा भिन्नवासे यत्ति बुढ्दादौ सचित्तरए त्ति अरण्णे वाउद्धयपुढविरएत्ति भणियं होइ, संजमघाइयं एवं तिविह 1327 महिकादिहोइ, इमं च दव्वे त्ति तं चेव दव्वं महिगादि खेत्ते काले जहिं वे ति जहिं खेत्ते महिगादि पडइजच्चिरं कालं सव्वं ति भावओ स्वरूपम्। यथा राजा तथा तीर्थकरो यथा जानपदास्तथा साधवो यथा घोषणं तथा सूत्रं अस्वाध्यायिके स्वाध्यायप्रतिषेधकमिति, यथा म्लेच्छस्तथाऽस्वाध्यायो महिकादिः, यथा रत्नधनादि तथा ज्ञानादीनि महिकादिभिरविधिकारिणो हियन्ते। (r) स्तोकावशेषा पौरुषीति कालवेलेति यद्धणितं भवति, एवं स त्वितिसम्बन्धः, अध्ययनं पाठः अपिशब्दात् व्याख्यानं वापि यः करोति आज्ञाद्युल्लङ्घने ज्ञानादिसाररहितस्य तस्य छलना तु संसार इति ज्ञानादेवैफल्यादेव। 0 महिकेति धूमिका भिन्नवर्षमिति बुद्दादौ सति सचित्तं रज इति अरण्ये वातोद्भूतं पृथ्वीरज इति भणितं भवति, संयमघातकमेवं त्रिविधं भवति, इदं च द्रव्य इति तदेव द्रव्यं महिकादि क्षेत्रे काले यत्रैवेति- यत्र क्षेत्रे महिकादि पतति यावन्तं कालं (वा पतति) सर्वमिति भावतः // 1294 //

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