Book Title: Apbhramsa Bharti 2005 17 18
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 14
________________ अपभ्रंश भारती 17-18 हम गुस्से से खौलती, विचारों से लैस एक जीवित इन्सान हैं; आधी जमीन, आधे आसमान का बोझ हमारे कन्धों पर है, क्रान्ति के मस्तक पर लाल सलाम हैं हम औरतें। लेकिन सच तो यह है कि स्त्री के विषय में सोचने और समझने में कोई बुनियादी अन्तर प्राचीन समय से अबतक नहीं दिखाई देता है। हमारा साहित्य और समाज वैचारिक धरातल पर नारी को 'शक्ति' का प्रतीक मानता रहा है; पुरुष ही नहीं, देवताओं की भी जननी कहकर उसे ‘आदरणीया' कहता रहा है; उसे पूजनीया, महाभागा, पुण्यवती, गृहलक्ष्मी कहता है; उसे समाज का आधार मानता है और व्यक्ति, समाज, राष्ट्र- सबके प्रति उसके दायित्व का बोध कराते हुए उसे आदर्श की रक्षा की अनिवार्यता पर बल देता है और इसीलिये उसके लिए बारम्बार अनेक नियम-कानून बनाता रहता है। . इस परिप्रेक्ष्य में जब हम वैदिक काल से लेकर अब तक के साहित्य पर नज़र डालते हैं तो पाते हैं कि हमारा सम्पूर्ण वाङ्मय ऐसे नारी-चरित्रों पर प्रकाश डालता रहा है जो अपने आदर्श स्वरूप के कारण जन-मन पर अपना प्रभाव छोड़ते रहे हैं। हम पंचमहाशक्तियों, पंचसतियों', पंचपतिव्रताओं, पंच दिव्यधामेश्वरियों', पंच अवतारजननियों", पंचसाध्वियों", पंच वीरांगनाओं आदि-आदि विशेषणों से सम्पन्न नारियों का स्मरण बड़े ही गौरव के साथ करते हैं। हमारे साहित्यकारों ने भी ऐसे नारी-चरित्रों की निरन्तर सर्जना की है जिन्होंने अपने गुणों से, अपने कार्यों से समाज के सामने अनेकानेक आदर्श उपस्थित किये हैं और समाज को दिशादृष्टि दी है। दूसरी ओर से ऐसे नारी-चरित्रों से भी हमारा साहित्य भरा पड़ा है जो समाज द्वारा प्रताड़ित होने पर भी शक्तिसम्पन्ना बनकर सामने आईं। इन्द्र द्वारा छलीगई अहिल्या को पति द्वारा शापित होने पर पत्थर के रूप में बदलना पड़ा, रावण द्वारा अपहृत सीता को अग्निपरीक्षा देकर अपनी पवित्रता को प्रमाणित करने पर भी राम द्वारा परित्याग की पीड़ा सहनी पड़ी, उर्मिला को चौदह वर्षों तक लक्ष्मण की अवहेलना सहनी पड़ी, द्रौपदी को अनेकशः लज्जित और अपमानित होना पड़ा, सती को अपने पिता दक्ष से प्रताड़ित होने पर

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