Book Title: Apbhramsa Bharti 2005 17 18
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

View full book text
Previous | Next

Page 16
________________ अपभ्रंश भारती 17-18 जुड़े अनेक सवाल हमारे मनोमस्तिष्क को झकझोरने लगते हैं। परम्परागत सीता रामवनवास के अवसर पर रावण द्वारा बलपूर्वक अपहृत कर ली जाती है: रावण और रावण के अनेक पुरजनों-परिजनों के द्वारा समय-समय पर प्रताडित की जाती है, अन्ततः रावण के पराभव के उपरान्त रावण की कैद से मुक्त होती है तो अग्निपरीक्षा के दौर से गुजरती है; परन्तु राम का सान्निध्य पाते ही लोकापवाद के कारण राम के द्वारा त्याग दी जाती है। पुनः वनवास में रहते हुए अपने गर्भस्थ शिशुओं की सुरक्षा में सन्नद्ध रहती है। राम को उसकी आवश्यकता तब पड़ती है जब आचार्यों द्वारा यह कहा जाता है कि ‘पत्नी के बिना यज्ञकार्य सम्पन्न नहीं हो सकता', तब पुनः उसे अग्निपरीक्षा के दौर से गुजरना पड़ता है। हम परिकल्पना कर सकते है कि बार-बार सीता को समाज के समक्ष खड़ा करके उस पर अंगुली उठाई गई होगी तब उसे कितना अपमानित, कितना लज्जित होना पड़ा होगा, किन्तु इतने कष्ट, इतनी पीड़ा, इतनी प्रताड़ना सहने के बाद भी वह कहीं भी, कभी भी राम का विरोध नहीं करती, राम पर क्रोधित नहीं होती। वह अपने अधिकारों के लिए कभी नहीं लड़ती और अपने कर्तव्य कभी नहीं भूलती। वह यही मानती है कि उसी के कारण समाज में राम की निन्दा हो रही है। इस पर भी राम के प्रति उसकी श्रद्धा, भक्ति में कोई अन्तर नहीं पड़ता, जबकि राम उसके प्रति अनेकशः शंकाओं से भर जाते हैं। लक्ष्मण को शक्ति लगने पर राम को यह भय सताता है कि यदि लक्ष्मण के बिना वे अयोध्या लौटेंगे तो लोग यही कहेंगे कि उन्होंने नारी के लिए अपने प्रिय भाई को खो दिया। उनकी दृष्टि में स्त्री की हानि कोई विशेष हानि नहीं है, लेकिन भाई की हानि उनके अपयश का कारण बन जायेगी जेहउँ अवध कवन मुँह लाई, नारि हेतु प्रिय बन्धु गँवाई। बर अपजस सहतेउ मुँह लाई, नारि-हानि विशेष छति नाहीं॥" फिर बुनियादी सवाल यहाँ उठता है कि नारी वस्तु है या व्यक्ति? नारी से ही उच्च आदर्श की अपेक्षा क्यों की जाती है? नारी को हर हालत में पुरुष की बात मानना और जैसा वह चाहता है वैसा ही करना क्या जरूरी है? निर्दोष होने पर भी वही कष्ट क्यों सहे? उसे यह कहते हुए बार-बार क्यों गिड़गिड़ाना पड़े कि 'मन-कर्मकथन से आपकी अनुगामिनी होने पर भी किस अपराध से उसे त्याग दिया गया?' प्रश्न यह भी उठता है कि राम किस अधिकार से बार-बार सीता को अग्निपरीक्षा के लिए कहते रहे और सिर्फ इस भय से कि समाज उनके लिए क्या कहेगा- सीता का परित्याग करने का निर्णय ले बैठे! कहना न होगा कि नारी को लेकर हमारे समाज में वैचारिक और व्यावहारिक धरातल पर काफी अन्तर दिखाई देता है। व्यावहारिक दृष्टि से स्त्री को अपने सन्दर्भ में

Loading...

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106