Book Title: Apbhramsa Bharti 2005 17 18
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 23
________________ अपभ्रंश भारती 17-18 एक बार क्षमा कर दो! राम के द्वारा यह क्षमा-याचना सीता के चरित्र को बहुत ऊँचा उठा देती है। सीता के स्वतन्त्र व्यक्तित्व और महान चरित्र के सन्दर्भ में स्वयंभू ने अनेक पात्रोंलक्ष्मण, विभीषण, हनुमान, लंकासुन्दरी आदि के द्वारा अनेकशः अपने उद्गार व्यक्त किये हैं। लंकासुन्दरी के मुँह से स्वयंभू का यह कथन उसकी महानता का सही-सही बखान है कि 'चाहे कोई आग को जला दे, हवा को पोटली में बाँध दे, आकाशपाताल में लोटने लग जाये, ये बातें सम्भव हो सकती हैं पर सीता के चरित्र को कलंकित करना असम्भव है देव देव जइ हुअवहु डज्झइ, जइ मारुउ पड-पोट्टले बज्झइ। जइ पायाले णहंगणु लोदृइ, कालान्तरेण कालु जइ तिट्टइ। जइ उप्पज्जइ मरणु कियन्तहों, जइ णासइ सासणु अरहन्तहों। जइ अवरें उग्गमइ दिवायरु, मेरु-सिहरे जइ णिवसइ सायरु॥ एउ असेसु वि सम्भाविज्ज्इ, सीयहें सीलु ण पुणु मइलिज्ज्ड ॥83.4.4 इस तरह राम की तुलना में स्वयंभू ने सीता के चरित्र को कहीं ऊँचा उठाया है। यह सीता 'देवता-भाव' से सम्पन्न नहीं है, वह एक सामान्य किन्तु दृढ़प्रतिज्ञ, स्वाभिमानी, कष्टसहिष्णु, कर्मठ, निर्भीक एवं साहसी, लोककलाओं में प्रवीण, कोमलहृदया, सच्चरित्र और स्वतन्त्र व्यक्तित्व से सम्पन्न तथा आत्मविकास में संलग्न रहनेवाली है और इस रूप में वह आज की नारी के समकक्ष खड़ी है आत्मविश्वास से भरी हुई, . अन्तर्द्वन्द्व और संघर्षों के बीच, अन्याय-अत्याचार का विरोध करती हुई। नरेश मेहता, वनपाखी सुनो। स्वतन्त्रता आन्दोलन और नारी (महादेवी वर्मा का निर्मला ठाकुर द्वारा लिया गया साक्षात्कार), माध्यम, अक्टूबर-दिसम्बर, 2004, पृष्ठ-133 महादेवी साहित्य समग्र हम औरतें, अमिता, उत्तरा. वर्ष 14, अंक-4, जुलाई-सितम्बर, 2004 पूजनीया महाभागाः पुण्याश्च गृहदीप्तयः स्त्रियः श्रियो गृहस्योक्तास्तस्ताद्रक्ष्या विशेषतः।। - विदुरनीति और जीवनचरित्र, सं.पं. ज्वालाप्रसाद चतुर्वेदी, छठा अध्याय, पृष्ठ-139

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