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अपभ्रंश भारती 17-18
__ आश्चर्य इसलिए भी होता है कि जहाँ पर जिनभक्ति की बात होती है वहाँ पर कवि सौन्दर्य को क्षणिक मात्र मान लेता है नहीं तो जब सौन्दर्य का वर्णन हो तो एक-एक अंग का सौन्दर्य यह अपभ्रंश कवि इस तरह से वर्णित करता है जैसे सौन्दर्य का कोई मानक स्वरूप निर्माणित कर रहा है। सीता का सौन्दर्य वर्णन इस सन्दर्भ में देखा जा सकता है--
वर-पाय-तलेंहिँ पउणा रएहिँ। सिङ्घल-णहेहिँ दिहि-गारऍहिं।। उच्चङ्गुलिऍहि वेउल्लिएहिँ। वटुलिएँ गुप्फेहिँ गोल्लिएहिँ। वर-पोट्टरिऍहिँ मायन्दि एहिं। सिरि-पव्वय-तणिऍ हिं मण्डिएँ हिँ।। ऊरुअ-जुएण णिप्पालएण। कडिमण्डलेण करहाडएण। वर-सो णिए कञ्ची-केरियाएँ। तणु-णाहिएण गम्भीरियाएँ। सुललिय-पुट्ठिएँ सिङ्गरियाएँ। पिण्डथणियएँ एलउरियाएँ। वच्छयलें मज्झिमएसएण। सिन्धव-मणिबन्धहिँ वट्टलेंहिँ।। माणुग्गीवेएँ कच्छायणेण। उट्ठउडे गोग्गडियहें तणेण ।। दसणावलियएँ कण्णाडियएँ। जीहएँ कारोहण-वाढियएँ। णासउडेंहिँ तुङ्ग-विसय-तणेहिं। गम्भीरएहिं वर-लोयणेहिँ। भउहा-जुएण उज्जेणएण। भालेण वि चित्ताऊडएण॥ कासिऍहिँ कवोलेंहिं पुज्जएहिं । कण्णेहि मि कण्णाउज्जएहिँ। काओलिहिँ केस-विसेसएण। विणएण वि दाहिण एसएण॥ अह किं वहुणा वित्थरेंण अ-णिविण्णण सुन्दर-मइण । एक्केक्कउ वत्थु लएप्पिणु णावइ घडिय पयावइण॥49.8॥
अर्थात् सीता के चरण पउनारी स्त्रियों के चरणतल की तरह थे। नख, भाग्यशाली सिंहलिनियों के नखों की तरह। उँगलियाँ वेउल्ल स्त्रियों की उँगलियों की तरह। एड़ी गोल्लक स्त्रियों की गोल एड़ियों की तरह। मण्डन श्री पर्वत की कन्याओं के मण्डन से, उरू नेपाली महिलाओं के उरूयुगल-से। कटि, करहाट की स्त्रियों के कटिमण्डल-से। श्रोणि काञ्ची की महिलाओं की श्रोणि-से। नाभि गम्भीर देश की स्त्रियों की गम्भीर नाभि-से। पुढे, शृंगारिकाओं के सुन्दर पुट्ठों-से। भुजा शिखर, पश्चिम देशीय स्त्रिओं के भुजाशिखरसे। बाहु, द्वारवती की स्त्रियों के सुन्दर बाहुओं-से। मणिबन्ध, सिन्धुदेश की स्त्रियों के सुन्दर मणिबन्धों-से। ग्रीवा कच्छ महिलाओं की उन्नत ग्रीवा-से। ठुड्डी, गोग्गल महिलाओं