Book Title: Apbhramsa Bharti 2005 17 18
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 67
________________ 56 अक्टूबर 2005-2006 पार्श्वनाथ आदित्यवार कथा अपभ्रंश भारती 17-18 सारद धरिवि । आदिअंतु जिणु वंदिवि गुरु णिग्गंथु णवेपिणु सुयणहं अणुसरिवि॥1॥ पासणाह तह रविवउ पभणमि सावयहं । जासु करतह लब्भइ संपइ इह पंचकर ॥2 ॥ पुव्वदिसहं सुपसिद्धी मढमंदिर आरामहं सोहिय पालु हिउ निवसइ नव नीइ सयाणउ दुवसण वाणारसिणयरि । सछसिरि ॥3॥ धम्मु ठिओ। दूरिट्ठिओ ॥ 4 ॥ अरूहधम्म अणुरतउ निवसइ सेठि तहि । मइसारू पिय गुणवड़ सहियउ इंदुजिहं ॥ 5 ॥ ताह पुत्त रिसिसंखउवाल गुणसहिया । छहसुय तं परिणाविय सेठिहि सुवसहिया ॥ 6 ॥

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