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अपभ्रंश भारती 17-18
107. जिण (द्वारा) कहा गया है ( कि) इसको निर्भ्रान्त समझ । जो सिद्ध है, जो सिद्ध होंगे, जो सिद्ध हो रहे हैं। आत्म-दर्शन में तीनों ही स्पष्ट है।
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108.
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-काव्य
संसार के भय से भयभीत (लोगों के लिए) जोगचन्द मुणि द्वारा, दोहा - व के बहाने 'आत्मा-सम्बोधन' कहने के लिए (यह रचना की गई है ) ।