Book Title: Apbhramsa Bharti 2005 17 18
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 78
________________ अपभ्रंश भारती 17-18 59-60 धरणेन्द्र के द्वारा हमें अर्पित कर दिया गया है। राजा ने ऐसा सुनकर मन में हर्षित होकर कहा बालक अधिक पुण्यवान है। जहाँ हमारी लाड़ली सुकुमार पुत्री अच्छी तरह रहे। कदली के गर्भ के समान सुन्दर मैंने तुझे अपनी पुत्री दी।।59-60॥ 61-62 शुभ दिन में लगण पहुँचाया और मण्डप रचाया गया। बहुत सुन्दर रत्नों के स्तम्भ की चउरी वहाँ स्थापित की गयी। शीघ्रता से मंगल कलश रखा और मंगल गीत गाये। कामिनी हर्षपूर्वक नाचती है और तूरही बजायी जाती है।।61-62 ।। 63-64 कुमा का ब्याह होने पर लोग आनन्दित हुए। बहुत से दीनों को बहुत दान दिया गया और श्रेष्ठता से प्रशंसा की गयी। जो-जो संसार में दुर्लभ था वह सब उसने पुण्य से प्राप्त किया। अरे! पुण्य करके लोक के स्वर्ग व मोक्ष को प्राप्त किया।।63-64॥ 65-66 रूपरिद्धि, सुख-सम्पत्ति को इसके समान कौन पाने वाला है। जिसकी प्रसन्नता से लोक का शिखर भवन प्राप्त होता है। कुछ दिन वहाँ रहकर और फिर राजा को प्रणाम करके फिर तुमने हमारे स्वामी का बहुत उपकार किया।।65-66।। 67-68 तुम्हारी कृपा से नारी रत्न प्राप्त हुआ और जिस प्रकार मदोन्मत्त हाथी मदपूर्वक कुटुम्ब से मिलता है वैसे ही राजा भी बिलखते हुए दुःखी मन और चित्त से कहता है। यदि पुत्री बहुत प्यारी है तो वह प्रिय को नहीं हरेगी।।67-68 ।। 69-70 इस प्रकार राजा के द्वारा विचारकर सभी लोगों को समधी बनाया। चतुरंगिणी सेना चली और सभी वंदिगण प्रशंसा गाते है और बनारस के गमण काल में धूल से सूर्य भी नहीं दिखता है।।69-70। 71-72 वहाँ पर पाँच प्रकार के बाजे बजते है शिखर पर अनेक छत्र है। राजा के चलने की शंका से एक के ऊपर एक मनुष्य गिरते है। वाणारसी राजा उस वन में आया जैसे पुण्य से बलवान स्वर्ग से देवता आये हो॥71-72।।

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