Book Title: Apbhramsa Bharti 2005 17 18
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 79
________________ 68 अपभ्रंश भारती 17-18 सेठिहि गय उ वधावओ पूतहं आगमणे । णिसुणि वात मण रहसि य वेगे गईय वणि ।। 73 ॥ खणिखणि आ कौ भेदहि खणि पायहिं पडहिं । खणि जिणु पासु पसंसहि खणि गायहि णडहिं ॥ 74 ॥ उछवि आइय मंदिर परिमिय सयणगणा । भउ संजोउ वहु दिवसहिं तूटे पावरिणा ।। 75 ॥ मुणिहि वि अइस जाणिवि दिदु करि वउ धरहिं । दाणु पूय सुपयासहि जिणु सामिउ सरहि ॥76॥ अइसउ वउ उपदेसि उ पुरजण मण धरिउ । णिय - णिय सत्तिये लोयहु रविवउ उ धरिओ ॥77॥ सग्गु मोक्खु तियकर यलि सेठिहिं फुडु कियओ । भव तिहि पंचहि मज्झेहि सिवपुर आजियओ ॥ 78 ॥ भव्वुजीउ जो दिदु करि रविवउ पालिसइ । सो सिव सोक्खु लहेसइ भउ न निहालि सई । 79 ॥ वज्झहं पुत्तु समप्पइ रोरह भूरि धणु । वहिरहं कन्न अनोवम अंधहं दुह णयणा ॥80 ॥ रविवउ लोय अपूरवु संसउ मत करहो । णिच्छउ करि फलु जाणि भाविय होउ धरहो ॥ 81 ॥ भवियहो हउ जु अयाणउ मइ ण छंदु मुणिओ । अम्ह दो मत लावहु मतिहीणें भणिओ ॥ 82 ॥ पास जिणेंद पसायहं दिवसिह इउ कहइ । पंडिय सुरिजणु पासहं भत्तउ वउ लहइ ॥83 ॥ जो यहु पढइ पढावइ णिसुणइ कन्नु दइ । सो जसु कित्ति पसंसिय पावड़ परमगई ॥ 84 ॥ इति श्री पार्श्वनाथ आदित्यवार कथा समाप्त

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