Book Title: Apbhramsa Bharti 2005 17 18
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 68
________________ अपभ्रंश भारती 17-18 57 अक्टूबर 2005-2006 पार्श्वनाथ आदित्यवार कथा संपा.-अनु.- श्रीमती शकुन्तला जैन 1-2 आदि से अन्त तक हुए (24 तीर्थंकर) जिनेन्द्र की वन्दना करके और जिणवाणी/सरस्वती को मन में धारण कर निर्ग्रन्थ गुरू को नमस्कार कर और सज्जनों का अणुसरण कर अब श्रवकों के लिए उन पार्श्वनाथ के रविव्रत को कहता हूँ। जिसको करते हुए इस संसार/लोक में पाँच प्रकार की गति रूप (विपुल) सम्पत्ति प्राप्त की जाती है (करता है)। (पंच गति-मनुष्य, देव, 'नारकी, तिर्यंच, मोक्ष)॥1-2।। 3-4 पूर्व दिशा में मठ, मन्दिर और व्रतियों के रहने के निवास स्थान से शोभित और स्वच्छ सुप्रसिद्ध वाणारसि नगर में धर्म में स्थित प्रजापाल नामक राजा वहाँ निवास करता है। राजनीति में वह चतुर और दुर्व्यसनों से दूर रहने वाला था।।3-4॥ 5-6 अर्हत धर्म में अनुरक्त जैसे इन्द्र-इन्द्राणी के साथ रहता है वैसे ही अर्हन्त का भक्त मति सागर सेठ प्रिया गुणवती के साथ वहाँ रहता है। उसके गुण सहित सात पुत्र थे (रिसि-7)। उन सात में से छ: पुत्र सेठ की पुत्रियों के साथ विवाहित हुए।।5-6॥

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