Book Title: Apbhramsa Bharti 2005 17 18
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 26
________________ अपभ्रंश भारती 17-18 अक्टूबर 2005-2006 15 वीर कवि-विरचित जंबूसामिचरिउ में विद्युच्चर मुनि द्वारा बारह भावनाओं का अनुचिन्तन - डॉ. सूरजमुखी जैन संसार से विरक्त मुमुक्षु जम्बूस्वामी को संसाराभिमुख करने में असफल होकर चौरकर्म में लिप्त विद्युच्चर चोर भी जम्बूस्वामी के साथ ही जैनेश्वरी दीक्षा ग्रहण कर लेता है। परम तपस्वी, 11 अंगधारी विद्युच्चर महामुनि विहार करते हुए अपने श्रमणसंघ सहित ताम्रलिप्ति नगर में पहुँचते हैं। वहाँ रात्रि में भद्रभारी नामक कात्यायनी देवी द्वारा किये गये भयंकर उपसर्ग को सहन करते हुए महामुनि अपने वैराग्य को सुदृढ़ करने के लिए बारह भावनाओं का चिन्तन करते हैं। पण्डित दौलतराम जी ने वैराग्य उत्पन्न करने के लिए बारह भावनाओं के अनुचिन्तन को माता के समान बताया है।' अनित्य भावना जिह जिह घोरुवसग्गु पहावइ तिह तिह जगु अणिच्चु परिभावइ। गिरिनइपूर व आउसु खुट्टइ पक्कफलं पि व माणुसु तुट्टइ। सिय-लावण्णु वण्णु-जोव्वणु-बलु गलइ नियंतहो णं अंजलिजलु। बंधव-पुत्त-कलत्तइँ अण्णइँ पवणाहय जंति णं पण्णइँ। रह-करि-तुरय-जाण-जंपाणइँ अहिणवघणउन्नयणसमाण। चामर-छत्त-चिंध सिंहासणु विज्जुलचवलविलासुवहासणु।

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