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10.
कुवलयमाला, पृष्ठ-3, गाथा 20 तिलक मंजरी, श्लोक 23
अपभ्रंश भारती 17-18
सुपासनाह चरित, पुव्वभव, गाथा 9
प्रभावक चरित, पृष्ठ- 28-40
किसी-किसी ने इस कथा का नाम 'तरंगलोला' लिखा है।
इसके रचयिता वीरभद्र आचार्य के शिष्य नेमिचन्द्रगणि हैं, जिन्होंने मूल कथा के लगभग 1000 वर्ष बाद अपने यश नामक शिष्य के लिए इसे लिखा था । नेमिचन्द्र के अनुसार पादलिप्त ने 'तरंगवती - कहा' की रचना देशी भाषा में की थी जो अद्भुत रस सम्पन्न एवं विस्तृत थी और केवल विद्वद् योग्यं थी । लेखक के सम्बन्ध में अन्य वृत्त अज्ञात है। जर्मन विद्वान् अर्नेस्ट लॉयमन ने इसका जर्मन भाषान्तर प्रकाशित किया है। इस भाषान्तर का गुजराती अनुवाद भी पहले पत्रिका में और बाद में पुस्तक रूप में प्रकाशित हो चुका है।
14, खटीकान, मुजफ्फर नगर
उत्तर प्रदेश
251 002
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