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अपभ्रंश भारती 17-18
चतुर्थ पल्लव के प्रारम्भ में पुनः भृगी पूछती है
कह कह कन्ता सच्चु भणन्ता किमि परिसेना सञ्चरिआ। किमि तिरहुत्ती हुअउँ पवित्ती अरु असलान किक्करिआ॥4.1-2॥
अर्थात् कहो कान्त, कहो, सच कहो! सेना किस प्रकार चली? तिरहुत में क्या हुआ और असलान ने क्या किया? कविकोकिल विद्यापति इस चतुर्थ पल्लव में इब्राहीम शाह हस्ती, अश्व, पदातिक यानी विशाल चतुरंगिनी सेना और उसके तिरहुत को देखकर ऐसा लगता है मानो विधाता ने उन्हें विन्ध्याचल से छाँटकर निकाला है। गमन में पवन को पीछे छोड़नेवाले और वेग में मन को जीतनेवाले सिन्धु नदी के पार उत्पन्न होनेवाले त्वरा और मन्यु से भरे हुए तेजवन्त तरुण घोड़े मानो सूर्य के रथ से छुड़ाकर लाये गये हैं। मतवाले मंगोल किसी का बोल नहीं समझते और अपने स्वामी के लिए रण में प्राणपण से जूझ जाते। सैनिक कच्चा मांस खाते। मदिरापान से उनकी
आँखें लाल हो जातीं। आधे दिन में वे बीस योजन दौड़ जाते। बगल में रखी रोटी पर दिन काट देते। गौ-ब्राह्मण की हत्या में वे कोई दोष नहीं देखते और शत्रु-नगर की नारियों को बन्दी बनाकर ले आते। वे देखने में जंगलियों जैसे लगते। गोरू मार बिसमिल्ला कर खा जाते। वे जिस दिशा में धावा मारते उस दिशा में राजाओं के घर की स्त्रियाँ बाजारों में बिकने लगतीं। हाथ में कुन्त, भाला लिये गाँव-नगर जलाते चलते। औरतों को छोड़ बच्चों को मारते और निर्दयतापूर्वक मनमाना लूटपाट मचाते। लट से अर्जन होता और उसी से उनका पेट चलता। इस तरह द्वीप-द्वीपान्तर के राजाओं की निद्राहरण करते, सैन्य-दलों को चूर्ण करते, पहाड़ों-गुफाओं को ढूँढ़ते, शिकार, तीरन्दाजी, वनविहार, जलक्रीड़ा, मधुपान और रत्योत्सव की रीतियों का पालन करते हुए सुलतान इब्राहीम शाह तिरहुत की सीमा में प्रवेश कर तख्त पर बैठते हैं। फिर दोनों पक्ष का हालचाल जानकर तत्क्षण फरमान जारी करते हैं कि- असलान काफी समर्थ है। अतः उसे किस प्रकार गिरफ्तार किया जाए?
इस पर कीर्ति सिंह कहते हैं कि- 'मैं उसे पलान कसे घोड़े से ठेलकर गिरफ्तार कर लाऊँगा। ब्रह्मा, विष्णु, महेश भी उसकी रक्षा में क्यों न आजायें, आज मैं उसकी हत्याकर उसके रुधिर से पिता के चरणों में तिलांजलि दूंगा।' तदन्तर कीर्तिसिंह का मनोरथ पूर्ण करने के लिए सुलतान अपनी समस्त सेना को नदी पार करने का आदेश देते हैं और स्वयं भी घोड़े पर तैरकर गण्डक नदी पार करते हैं। राजधानी के पूरब मध्याह्न वेला में उभय सेना के मध्य भयंकर युद्ध प्रारम्भ हो जाता है। कवि के शब्दों में कीर्तिसिंह ने ऐसा युद्ध किया कि मेदिनी शोणित में मज्जित हो गयी