Book Title: Apbhramsa Bharti 2005 17 18
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 41
________________ अपभ्रंश भारती 17-18 द्वारा अत्यन्त विमोहक शैली में अपने पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करते हैं। प्रथम पल्लव में कीर्तिसिंह और उनके पूर्व-पुरुषों की संक्षिप्त कथा के बाद कवि कामना करता है कि कीर्तिसिंह की कीर्ति-कामिनी चन्द्रकला की तरह विजय प्राप्त करे कीर्ति सिंह नृप कीर्ति कामिनी यामिनीश्वर कला जिगीषतु ।।1.105-61 द्वितीय पल्लव में भृंगी पुन: पूछती है कि शत्रुता कैसे उत्पन्न हुई और उन्होंने कैसे प्रतिशोध लिया? हे प्रिय, आप यह कहानी कहें मैं सुखपूर्वक सुनूँगी - किमि उप्पनउँ बैरिपण किमि उद्धरिअउँ तेण । 30 पुण्ण कहाणी पिअ कहहु सामिज सुनओ सुहेन ।12.2-31 मिथिला नरेश गणेश्वरसिंह से पराजित होने के बाद राज्यलोभी मलिक असलान नामक सुलतान उनके साथ पहले मैत्री, फिर विश्वासघात करता है और धोखे से उन्हें मार डालता है। राजा के मरते ही राज्य में अव्यवस्था फैल जाती है। ठाकुर ठग बन जाते हैं और चोर जबरन घरों पर कब्जा कर लेते हैं। दुष्ट सज्जनों को पराभूत कर देते हैं। न्याय - विचार करनेवाला कोई रह नहीं जाता। जाति - कुजाति में शादियाँ होने लगती हैं। काव्य-मर्मज्ञों और कद्रदानों के अभाव में कवियों की स्थिति भिखारियों जैसी हो जाती है। कविकोकिल के शब्दों में राजा गणेश्वर के स्वर्ग जाने पर तिरहुत' के सभी गुण तिरोहित हो जाते हैं - अक्खर वुज्झनिहार नहिं कइकुल भमि भिक्खारि भउँ । तिरहुत्ति तिरोहित सब्ब गुणे रा गणेस जबे सग्ग गउँ । 2.14 - 15॥ बाद में कोप- शमन होने पर मलिक असलान को हार्दिक क्लेश और पश्चात्ताप होता है। मंत्री, मित्र, माता और गुरुजनों के समझाने के बाद भी कीर्ति उसके प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करता। उसे केवल वीर पुरुषों की रीति प्यारी है। मानहीन भोजन करना, शत्रु- समर्पित राज्य लेना और शरणागत होकर जीना, ये तीनों उसकी दृष्टि में कायरों के कार्य हैं। पिता के वैर का बदला लेने और अपनी प्रतिज्ञा पर अडिग रहने का संकल्प लेकर वह सहोदर भाई वीरसिंह से मंत्रणा करता है और प्रतापी बादशाह इब्राहीम शाह से मिलने जौनपुर के लिए चल देता है । कविकोकिल विद्यापति कीर्तिसिंह के नगर - प्रस्थान, मार्ग संचरण, नगर-प्रवेश, बाजार, वेश्या-गृह, राज- दरबार, सैन्य अभियान और तुर्कों के रहन-सहन, सामाजिक, मानसिक और चारित्रिक विशेषताओं का अत्यन्त सूक्ष्मतम चित्ताकर्षक और चरम यथार्थवादी चित्रण करते है । 'कीर्तिलता' से गुजरते हुए यह स्पष्ट परिलक्षित और प्रमाणित

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