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अपभ्रंश भारती 17-18
अक्टूबर 2005-2006
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कविकोकिल विद्यापति और उनकी कीर्तिलता
डॉ. सकलदेव शर्मा
मिथिलांचल के महाकवियों ने अपभ्रंश को 'अवहट्ठ' की संज्ञा दी है। पहलीबार 'अवहट्ठ' का प्रयोग हमें महाकवि ज्योतिरीश्वर ठाकुर ( 1250-1340 ईसवी), हरिसिंहदेव के राजकवि के 'वर्णरत्नाकर' (1325 ईसवी) में देखने को मिलता है। भाषात्रयी में संस्कृत, प्राकृत के बाद निर्विवाद रूप से 'अवहट्ठ' का नाम आता है। पैशाची, शौरसेनी और मागधी 'अवहट्ठ' के बाद स्थान पानेवाली भाषाएँ हैं। दूसरीबार 'अवहट्ठ' का सबसे समर्थ और गौरवपूर्ण प्रयोग कविकोकिल महामहोपाध्याय विद्यापति ( 1380-1460 ईसवी) 'कीर्तिलता' में करते हैं। कीर्तिलता उनकी प्रारम्भिक रचना है जिसका प्रणयन काल 1402-1404 ईसवी के आसपास या उसके तुरन्त बाद माना जाता है। इसी समय सुलतान इब्राहीम शाह की सैन्य सहायता से कीर्तिसिंह मिथिलाधिपति के रूप में सिंहासनारूढ होते हैं।
विद्यापति का जन्म दरभंगा जिला के ' बिस्फी' (सम्प्रति 'बिस्फी' मधुबनी जिला का एक खण्ड है) नामक गाँव में एक विद्यानुरागी मैथिल ब्राह्मण परिवार में हुआ था । उनके पिता गणपति ठाकुर संस्कृत के प्रकाण्ड पण्डित थे। वे मिथिला- नरेश गणेश्वरसिंह के सभासद और राजकवि थे। अतः बाल्यकाल में विद्यापति अपने पिता के साथ कई
राज दरबार में भी गये थे। राजा गणेश्वरसिंह के पुत्र और विद्यापति के आश्रयदाता