________________
अपभ्रंश भारती 17-18
एउ जं रावण रज्जु तुहारउ। तं महु तिण-समाणु हलुआरउ॥42.7.3
सीता का साहस, तेज, धैर्य हनुमान को यह कहने के लिए बाध्य करता है कि महिला होकर भी सीता में पुरुषों से अधिक साहस है क्योंकि विषम परिस्थितियों में भी इसमें अत्यधिक धैर्य है।" उसके धैर्य का प्रमाण इस बात से भी मिलता है कि हनुमान से राम-लक्ष्मण का कुशल समाचार जानने के उपरान्त यानी अपहृत होने के 21 दिनों के बाद ही वह भोजन ग्रहण करती है। फिर हनुमान उन्हें अपने कन्धे पर बैठाकर राम के पास ले चलने का प्रस्ताव रखते हैं तो वे इसे कुलवधु की गरिमा के विरुद्ध कहकर अस्वीकार कर देती हैं। वे कहती हैं कि जनपद के लोग निन्दाशील होते हैं। उनका स्वभाव दुष्ट और मन मलिन होता है, वे व्यर्थ ही दूसरों पर आशंका करने लगते हैं, अतः तुम्हारे साथ मेरा जाना उचित नहीं हैगम्मइ वच्छ जइ वि णिय-कुलहरु। विणु भत्तारें गमणु असुन्दरु॥ जणवउ होइ दुगुच्छण-सीलउ। खल-सहाउ णिय चित्तें मइलउ॥ जहिँ जें अजुत्तु तहिँ जे आसंकइ। मणु रंजेवि सक्को कव ण सक्कइ॥ णिहएँ दसाणणे जय-जय सदें। मइँ जाएवउ सहुँ वलवदें।।50-12.6-9
__लंकाविजय के उपरान्त विभीषण सीता को राम के पास ले जाने के लिए जाता है तो सीता उसके साथ जाने से भी इन्कार कर देती है। यहाँ भी सीता का स्वाभिमान झलकता है। वह चाहती है कि राम स्वयं आकर उसे ले जाएँ। सीता स्पष्टतः पुरुषों की स्त्रियों पर आरोप लगाने की प्रवृत्ति की ओर संकेत करती है
विणु णिय-भत्तारें जन्तियहें। कुलहरु जें पिसुणु कुलउत्तियहें। पुरिसहुँ चित्तइँ आसीकवसइँ। अलहन्त वि उद्दिसन्ति मिसइँ॥ वीसासु जन्ति णउ इयरहु मि। सुय-देवर-मायर-पियरहु मि॥78.6.2.5
-- बिना पति के जानेवाली कुलपत्नी पर कुलधर भी कलंक लगा देते हैं। पुरुषों के चित्त जहर से भरे हुए होते हैं। नहीं होते हुए भी वे कलंक दिखाने लगते हैं। दूसरों का तो वे विश्वास ही नहीं करते। यहाँ तक कि पुत्र, देवर, भाई और पिता का भी नहीं।
पर वही सीता जो राम के प्रति सदैव एकनिष्ठ है; लक्ष्मण के प्रति मातृत्व भाव रखती है; अपने शील और चारित्र्य की सुरक्षा के लिए सदैव सजग है, अडिग है; कोमल, सरल, निष्पक्ष और निष्कपट है; परिस्थिति विशेष में विरोध और विद्रोह के स्वर भी उच्चरित कर सकती है क्योंकि वह अन्याय सहन नहीं कर सकती, अपने