Book Title: Apbhramsa Bharti 2005 17 18
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 12
________________ अपभ्रंश भारती 17-18 अक्टूबर 2005-2006 महाकवि स्वयंभू-कृत पउमचरिउ की सीता और स्त्री-विमर्श - डॉ. नीरजा टण्डन वहन करो, ओ मन! वहन करो, सहन करो पीड़ा!! यह अंकुर है, उस विशाल वेदना की, वेणु वनदावा-सी थी तुममें जो जन्मजातआत्मज है स्नेह करो, अंचल से ढंककर रक्षण दो वरण करो, ओ मन! वहन करो पीड़ा।

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