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जत्थ सरिसुप्पलाई
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जत्थं सत्थ-विच्छुलाई ।
मच्छ- कच्छ5-विच्छुलाई ॥
यहंस सोहियाइं ।
मत्तहत्थि
डोहियाई ॥
भीतरंग
भंगुराई ।
तारहार
पंडुराई ॥
पउमिणी
करंबियाई ।
चंचरीय
चुंबियाई ॥
मारुप्प (आय) बेवियाई । चक्कवाय सेवियाई ॥
णक्क - गाह-माणियाइं । एरिसाई पाणियांइ ॥ सेयणील लोहियाई । सूररासि बोहियाई ॥
मत्त
छप्पयाउलाई ।
जत्थ
सरिसुप्पलाई ||
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अपभ्रंश भारती 13-14
रिट्टणेमिचरिउ 2.2. मत्स्यों और कछुओं से
जिस ( सरोवर) में जल प्राणी समूह से आपूरित है, जो
व्याप्त है, राजहंसों से शोभित है, मतवाले हाथियों से आन्दोलित है, भयंकर लहरों से वक्र है, स्वच्छ हार की तरह धवल है, कमलिनियों से अंचित है, भ्रमरों से चुम्बित है, हवाओं से कम्पित है, चक्रवाकों से सेवित है, मगरों और ग्राहों के द्वारा सम्मानित है। इस प्रकार के सरोवर के जल में श्वेत, नीले और लाल, सूर्य की किरणों से विकसित, मतवाले भ्रमरों से आकुल सरस कमल थे।
अनु. - डॉ. देवेन्द्रकुमार जैन